हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-48
दीवान सिंह जाखड़ः पद की आकांक्षा से दूर, लेकिन लड़ाई में आगे
नये कार्यकर्ता हरदम मुस्कुराते हुए और हौसला अफजाई करने वाले मास्टर दीवान सिंह के इस स्वरूप परिचित नहीं होंगे। सन् 1968 की हड़ताल से सन् 2001 तक आम शिक्षकों और विशेषकर महिला शिक्षकों के बीच ऐसा लोकप्रिय नाम शायद ही कोई और रहा हो। मैं पहली बार सन् 1984 में अस्थायी और बेरोजगार अध्यापक संघ के जीन्द से मंडी आदमपुर पैदल मार्च के दौरान उनसे हाँसी में मिला था। वे हमें उत्साहित करने की इच्छा से आए थे। थोड़े से शब्दों में – “तुम युवा हो; अध्यापक हो और अपने साथ अन्याय को पहचान कर लड़ रहे हो, भला युवाओं को आगे बढ़ने से कोई रोक सका है? यह लड़ाई कामयाब होगी।” वे ऐसे नहीं बोलते – हम यह कर देंगे। सरकार को झुका देंगे, बल्कि उत्साहित करते – “आगे बढ़ो, जीत को कोई नहीं रोक सकता।”
रिकॉर्ड के अनुसार 06 मई 1943 (असल में 1942) बवानीखेड़ा के गांव पुर तत्कालीन जिला हिसार (अब भिवानी) में मोहरसिंह व श्रीमती सिरियां देवी के घर एक सपूत ने जन्म लिया। नाम रखा गया – दीवान सिंह। प्रारंभिक शिक्षा के उपरांत सन् 1962 में दसवीं परीक्षा पास की और जाट हाई स्कूल हिसार से जे.बी.टी. प्रशिक्षण लिया। वे शुरू में टोहाना में स्वास्थ्य विभाग में सैनेटरी इंस्पेक्टर लगे थे। तब मिलावट के खिलाफ संघर्ष चलाया। कुछ समय बाद 1967 में वे नियमित आधार पर प्राथमिक अध्यापक नियुक्त हो गए।
नियुक्ति को लगभग साल भर ही हुआ था कि जनवरी -फरवरी 1968 में कर्मचारियों की हड़ताल का आह्वान आ गया। वे उन दिनों बड़ोपल में थे। चूंकि वे स्वभाव से ही सामाजिक प्रवृत्ति के और न्यायप्रिय थे इसलिए बेझिझक हड़ताल में शामिल हो गए। सन् 1973 की हड़ताल के समय तक वे हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ के कार्यकर्ता बन गए थे। वे न केवल हड़ताल में शामिल हुए बल्कि दिल्ली में गिरफ्तारी देकर तिहाड़ जेल में भी रहे। इस संघर्ष में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया था। बाद में समझौता होने पर बहाल कर दिया गया। उन दिनों बंसीलाल के खौफ से भिवानी क्षेत्र में यूनियन से जुड़ना आसान नहीं था।
जब सन् 1980 में अध्यापक संघ ने अस्थायी शिक्षकों को पक्के करवाने और अन्य मांगों के लिए चण्डीगढ़ में गिरफ्तारियां दी वे उसमें शामिल रहे और लगभग बीस दिन बुड़ैल जेल में रहे। सन् 1982 में वे हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ जिला भिवानी के वरिष्ठ उपप्रधान चुने गए थे, लेकिन जिलाध्यक्ष दीवान सिंह सांगवान के मुख्याध्यापक के रूप में स्कूल के अधिक दायित्व के चलते उन्हें अधिकतर समय कार्यभार संभालना पड़ा। जब संगठन में व्यक्तिवादी और अलोकतांत्रिक रूझान के खिलाफ संघर्ष चला तो वे उसमें भी सक्रिय रूप से शामिल हुए। बाद में वे दो बार भिवानी जिले के अध्यक्ष चुने गए।
सन् 1986-87 में सर्वकर्मचारी संघ के गठन के बाद वे संघर्ष के मोर्चे की अगली पंक्ति के योद्धाओं में शामिल हो गए थे। पद की आकांक्षा से दूर, लेकिन लड़ाई में आगे .. यही उनकी पहचान बन गई थी। संगठनकर्ता के रूप में दीवान सिंह जाखड़ में जो हुनर रहा है वह कम ही कार्यकर्ताओं में पाया जाता है। महिलाओं को आन्दोलन में लाने में उनका कोई सानी नहीं था। सबके घरों तक पहुंच, उनके परिवार में जीवंत और भरोसे के संपर्क, उम्र में छोटियों को बेटी की तरह दुलार तो बड़ी को बहन की तरह मानने से सभी महिला शिक्षक दीवान सिंह का आदर करतीं। वे उनके आग्रह को ठुकरा नहीं सकती थी। आज भी याद है, जब 1992 में नांगल चौधरी से चण्डीगढ़ की पदयात्रा की तो भिवानी की महिलाओं का जत्था अनेक जिलों के पुरुष अध्यापकों से भी बड़ा रहा। युवा कार्यकर्ताओं को यूनियन में आगे लाने में और हौसला बढ़ाते हुए उनका साथ देने में वे विशेष रुचि लेते थे। संघर्षों के दौरान चार बार जेल में रहे; निलंबन, तबादले और बर्खास्तगी आदि सब तरह का उत्पीड़न झेला। वे योद्धा की तरह मोर्चे पर डटे रहे।
वे अपने गांव व इलाके में सामाजिक कार्यों में रुचि लेते थे। जब सन् 1991 में अध्यापक संघ ने कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण शिविर गांवों में आयोजित करने का निर्णय लिया तो उन्होंने झट से अपने गांव पुर में शिविर आयोजित करने की पहल की और बहुत अच्छे ढंग से इसकी मेजबानी की। केरल के अर्नाकुलम के बाद वे राज्य में पानीपत में चलाए गए साक्षरता अभियान से बहुत प्रभावित हुए और भिवानी में इस अभियान के कार्यकर्ताओं में शामिल हो गए। वे अब भी उस समय एसडीएम के रूप में भिवानी में कार्यरत राजेश खुल्लर की सादगी, सहयोग और क्षमताओं के कायल हैं। पिता की प्रेरणा से उनके बड़े बेटे ने शहर के स्लम एरिया में बच्चों को शिक्षा देने का काम शुरू किया है। जब वे 31मार्च 2001 को रिटायर मुख्य शिक्षक पद से हो गए तो सेवानिवृत्त शिक्षकों व कर्मचारियों को एकजुट करने में लग गए। भिवानी में गठित संगठन के पहले अध्यक्ष बने। उम्र के इस पड़ाव पर जब शरीर साथ नहीं देता उनका दिल जवान है। हर कार्यक्रम में शामिल होना चाहते हैं। वही शैली है, युवाओं व महिलाओं को आगे लाने की। आवाज यूं की यूं कड़क है और इन्सानियत उच्च दर्जे की। कोई एक बार उनसे मिलता है तो उसे अवश्य आकर्षित करते हैं। मास्टर शेरसिंह, फूलसिंह श्योकंद व सत्यपाल सिवाच के योगदान को वे विशेष महत्व देते हैं। परिवार में उनकी पत्नी, बेटे व तीसरी पीढ़ी मौजूद है। (सौजन्य ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक: सत्यपाल सिवाच।
