Blogकविता /कहानी/ नाटक/ संस्मरण / यात्रा वृतांतसमय /समाज

मंजुल भारद्वाज की कविता- सत्ता झूठी है!

कविता सत्ता झूठी है! मंजुल भारद्वाज ये बच्चा सच्चा है पर भूखा है ! इसे उम्मीद है इसके हाथ के…

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विजय शंकर पांडेय की कविता – मुस्कान भी असहिष्णु हो जाएगी

कविता मुस्कान भी असहिष्णु हो जाएगी विजय शंकर पांडेय   बांग्ला सुने नहीं कि बांग्लादेशी! उर्दू बोले नहीं कि पाकिस्तानी!…

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दुनिया की शांति,सौहार्द और सार्वभौमिकता को बचाने का कलात्मक आशावाद है थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन !

सत्य,समग्र ,सुंदर ! दुनिया की शांति,सौहार्द और सार्वभौमिकता को बचाने का कलात्मक आशावाद है थियेटर ऑफ़ रेलेवंस नाट्य दर्शन !…

Blogसाहित्य/पुस्तक समीक्षा

प्रेमचंद की स्त्री-दृष्टि

प्रेमचंद की स्त्री-दृष्टि  वीरेंद्र यादव विमर्शों के इस दौर में जनतांत्रिक दृष्टि से साहित्य का पुनर्मूल्यांकन समय की जरूरत है…

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कभी फुर्सत मिले तो सोचना !

कभी फुर्सत मिले तो सोचना ! -मंजुल भारद्वाज   तुम स्वयं एक सम्पति हो सम्पदा हो इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था में…

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मंजुल भारद्वाज की कविता – हे पुरुष !

हे पुरुष !  मंजुल भारद्वाज हे मूंछों पर ताव देने से पहले सोचो तुम कौन हो? तुम्हारे पास क्या है?…