आज़ाद की शहादतः प्रामाणिक ब्यौरा-3

आज़ाद की शहादतः प्रामाणिक ब्यौरा-3

चन्द्रशेखर आज़ाद के विश्वस्त सहयोगी और मित्र रहे विश्वनाथ वैशम्पायन ने अपनी किताब धरती पुत्र चन्द्रशेखर आज़ाद में आज़ाद की शहादत का यह ब्यौरा दिया हैः 

सुखदेव राज जुलाई 1967 में इसी चर्चा के सम्बन्ध में श्री बटुकनाथ अग्रवाल के यहां जौनपुर आये थे। उन्हीं से मुझे यह मालूम हुआ कि लीडर की 1931-32 की फाइल सुरक्षित है और वह देखने को मिल सकती है। हम दोनों इलाहाबाद आज़ाद के शहादत सम्बन्धी तथा यशपाल की गिरफ्तारी की घटनाओं का रेकार्ड देखने गए। मैं वह सब उतार लाया। आज़ाद की शहादत सम्बन्धी जो समाचार उस समय लीडर के 1 मार्च 1931 के अंक में प्रकाशित हुआ वह इस प्रकार हैः-

‘‘27 फरवरी को शुक्रवार सबेरे दस बजे लगभग 20 मिनट तक गोली चलती रहीं। वह गोली चालन दो क्रान्तिकारी तथा उत्तर प्रदेश सी0आई0डी0 के बीच हुआ। इसमें एक क्रान्तिकारी मारा गया तथा स्पेशल सुपरिन्टेण्डेण्ट आफ सी0आई0डी0 मि0 जे0 आर0 एच0 नाॅट बाॅवर (Mr. J.R.H. Not Bower) तथा डिप्टी सुपरिन्टेण्डेण्ट ठाकुर विशेशर सिंह को गोली से चोट आई। कहा जाता है कि ठाकुर विशेशर सिंह ने एक व्यक्ति को देखा जिस पर चन्द्रशेखर आज़ाद होने का शक हुआ। आज़ाद काकोरी तथा अन्य षड़यंत्रों के मामले में फरार थे तथा उन पर पांच हजार रुपयों का इनाम था। ठाकुर विशेशर सिंह ने अपनी यह शंका सी0आ0इ0डी0 लीगल एडवाइजर श्री डालचंद पर प्रकट की। विशेशर सिंह अपने घर कटरे में वापस आया और आठ बजे सबेरे फिर डालचंद और अर्दली सरनाम सिंह के साथ फिर यह देखने गया कि क्या वह वही आदमी है जिस पर उसकी शंका है।

पार्टी सिटी रोड की ओर से बड़ी सावधानी से गई जिससे इन लोगों को शंका न हो। उन्होने देखा कि थार्न हिल रोड कार्नर से पब्लिक लाइब्रेरी की ओर पार्क में जो फुटपाथ जाता है वहां ये दोनों बैठे थे। सिटी रोड की ओर से मोटे आदमी का चेहरा स्पष्ट नहीं दिखाई दे रहा था। इसलिए वह उसका चेहरा देखने को उत्सुक था। सी0आई0डी0 वाले उनके पास नहीं गए, इस डर से कि कहीं उन्हें शंका न हो जाय। इसलिए पार्टी सिटी रोड से थार्न हिल रोड पर म्योर सेन्ट्रल कालेज के गेट की विरुद्ध दिशा में पहुंची। यहां पर डालचन्द और विशेशर सिंह आज़ाद को अच्छी तरह देखने के लिए अलग अलग हो गए। जब उन्हें विश्वास हो गया तो अर्दली सरनाम सिंह को नाॅट बाॅवर को बुलाने भेजा जो पास ही में पार्क रोड नम्बर एक पर रहता था।

इसी बीच दोनों व्यक्ति उठकर थार्न हिल रोड की ओर आ गए। उनमें से एक के पास, जो बाद में भाग गया, साइकिल थी। वे डालचन्द के सामने से गुजरे। डालचन्द एक पुलिया पर बैठा दातौन कर रहा था। उसने तथा विशेशर सिंह ने दातौन का बहाना इसलिए किया था कि उन पर कोई शंका न करे। डालचन्द से आंखें चार हुईं पर वे आगे थार्न हिल रोड पर पूर्व की ओर गए। साइकिल वाला व्यक्ति फिर से लौटा और डालचन्द के सामने से गुजरा। बाद में वे इंडियन प्रेस के दरवाजे की ओर से फिर पार्क में घुसे। डालचंद ने इन दोनों के चेहरे अच्छी तरह देख लिए और जब ठाकुर विशेशर सिंह बाद में लौटा तो उसने उस घटना को बताया।

नाॅट बाॅवर ने इस घटना का प्रेस को जो वक्तव्य दिया वह इस प्रकार हैः-

‘‘ठाकुर विशेशर सिंह से मुझे संदेश आया कि उसने एक व्यक्ति को एल्फ्रेड पार्क में देखा है जिसका हुलिया आज़ाद से मिलता है जो क्रान्तिकारी मफरूर है। मैं अपने साथ मोहम्मद जुमान और गोविंद सिंह कान्सटेबिल को साथ लेता गया। जब हम उस जगह पहुंचे जहां समाचार लाने वाले ने विशेशर सिंह को छोड़ा था तो वहां उन्हें विशेशर सिंह नहीं दिखाई दिया। मैंने कार दूर खड़ी कर दी और दोनों व्यक्तियों की ओर बढ़ा। मेरे पीछे कान्सटेबिल थे। लगभग दस गज के फासले पर खड़ा होकर मैंने पूछा वे कौन हैं। उत्तर में उन्होंने पिस्तौल निकाल कर गोलियां चला दीं। मेरी पिस्तौल तैयार ही थी। जैसे ही मैंने देखा कि मोटा आदमी पिस्तौल निकाल रहा है मैंने उसके गोली चलाने के क्षण भर पहले ही गोली चला दी। साथी अपनी मैग्जीन खाली कर कूदकर भाग गया। मेरे साथ जो तीन आदमी थे उन्होंने भी गोलियां कुछ तो मोटे आदमी पर और कुछ दूसरे व्यक्ति पर चलाईं। जबकि मैं मैग्जीन निकाल कर दूसरी भर रहा था, मुझे मोटे व्यक्ति ने गोली मारी, जिससे मेग्जीन गिर पड़ी जो मेरे बायें हाथ में थी। तब मैं एक पेड़ (मौलश्री) की ओर भागा जो वहां से दस गज पर था। सिपाही पास की खाई में जा छिपे। इसी बीच विशेशर सिंह एक झाड़ी में रेंग कर पहुंचा। वहां से उसने मोटे आदमी पर गोली चलाई। जवाब में मोटे आदमी ने गोली चलाई जो विशेशर के मुंह पर लगी।

मैं पिस्टल न भर सका। जब जब मैं दिखाई देता मोटा व्यक्ति मुझ पर गोली चलाता रहा। आखिर वह पीठ के बल गिर पड़ा। मैं नहीं कह सकता कि उस पर किसी ने गोली चलाई या वह पहले जख्मों से मर गया। इस बीच लोग जमा हो गए-इसी बीच एक व्यक्ति एक वकशाट गन लेकर आया जो भरी थी। मैं नहीं जानता था कि मोटा आदमी सचमुच मरा है या बहाना कर रहा है। इसीलिए मैंने उस आदमी से उसके पैरों पर निशाना मारने को कहा। उस आदमी ने बन्दूक चलाई। उसके बाद मैं मोटे आदमी के पास गया तो वह मरा पड़ा था। उसका साथी भाग गया। मुझे पता नहीं कि वह घायल हुआ भी था या नहीं।‘‘

इसी बीच रामबदन सिंह सी0आई0डी0 ने जो पास ही कहीं था कर्नलगंज पुलिस स्टेशन पर जाकर खबर दी कि पार्क में एक अंग्रेज पर कोई गोली चला रहा है। इस पर आफिसर इन्चार्ज राय साहब चौधरी विसाल सिंह ने दो बन्दूकधारी सिपाही लिये तथा स्वयं पिस्टल लेकर साइकिल से रवाना हुआ। उसने देखा कि नाॅट बाॅवर जो एक पेड़ की आड़ में है, उस पर कोई गोली चला रहा है। उसने एक नौजवान को नाॅट बाॅवर की ओर आते देखा, पर वह बाद में गायब हो गया। यह शंका है कि वह आज़ाद का साथी था और नाॅट बाॅवर पर गोली चलाने की फिराक में था। नाॅट बाॅवर के पास जो व्यक्ति बन्दूक लेकर आया था वह सफेद कपड़ों में एक कान्स्टेबिल था।

इसी बीच डालचन्द अपने घर गया। वहां से एक मित्र की मोटर साइकिल पर बैठकर पुलिस लाइन गया। वहां से उसने सुपरिन्टेण्डेण्ट पुलिस मेजर्स (Meassures) को फोन किया तथा सशस्त्र रिजर्व पुलिस के आदमियों को पार्क की ओर भेजा; परन्तु जब तक पुलिस के आदमी वहां पहुंचते तब तक लड़ाई करीब करीब खत्म हो चुकी थी।

कनक तिवारी के फेसबुक वॉल से साभार