आजादसिंह मलिकः कुशल संगठनकर्ता के तौर पर  कमाया  नाम 

हरियाणाः  जूझते जुझारू लोग-42

आजादसिंह मलिकः कुशल संगठनकर्ता के तौर पर  कमाया  नाम

सत्यपाल सिवाच

सन् 1986-87 हरियाणा के कर्मचारी आन्दोलन के अविस्मरणीय अध्याय के रूप में दर्ज है। 30 मार्च 1987 को फूलसिंह श्योकंद ने आमरण अनशन शुरू कर दिया। हम कुछ साथियों की चण्डीगढ़ में रहकर कैम्प कार्यालय चलाने की ड्यूटी लग गई। हमने एक जगह रहकर दफ्तर चलाने की बजाए चण्डीगढ़ व पंचकुला क्षेत्र के कर्मचारियों से संपर्क करने की योजना बनाई। जिलों से कुछ कर्मचारी और जनवादी नौजवान सभा व एस.एफ.आई. के युवा-छात्र भी हमारे साथ काम करने के लिए आए।

पंचकूला में तब हमारे पास एक ही संपर्क था – आर.एस. साथी, जो उस समय हुडा में सरकारी वकील थे। उनके प्रयास से 6-7 सैक्टर के चौक पर पाँच बजे सभा हुई। अच्छी हाजिरी थी। साथी ने वहीं पर मंडी बोर्ड के आजादसिंह मलिक से परिचय करवाते हुए कहा – ये साथी हैं जिनमें नेतृत्व के असाधारण गुण हैं। ये चले तो दूर तक जाएंगे। वही हुआ – आजादसिंह एक साधारण कार्यकर्ता से राज्य अध्यक्ष तक पहुंचे। वर्षों बाद एक सड़क दुर्घटना में चोट लगने तक लगातार फुलटाइम सक्रिय रहे और नेतृत्वकारी भूमिका निभाई। पंचकुला क्षेत्र में अभियान चलाने के लिए मास्टर वजीर सिंह और छात्र नेता रामचन्द्र यादव के साथ मिलकर आजादसिंह ने असाधारण नेतृत्व कौशल दिखाया।

आजादसिंह का जन्म 10 अगस्त 1954 को पंजाब के संगरूर जिले की तहसील जीन्द (अब जिला जीन्द) के गांव शामलोकलां में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम दरिया सिंह व माता का नाम फूली देवी है। उनकी माँ मेरी बुआ लगती थी जो भैणी चन्द्रपाल गांव की थी। आजादसिंह तीन भाइयों में सबसे बड़े हैं। दोनों छोटे भाई अब दुनिया में नहीं रहे। बीच वाला वजीर सिंह जिला परिषद सदस्य रहे।

पहली से दसवीं तक की शिक्षा राजकीय उच्च विद्यालय शामलोकलां से प्राप्त करके एक साल तक हिन्दी-अंग्रेजी टाइपिंग सीखी। उसके फरवरी 1974 में गवर्नमेंट कॉलेज जीन्द में छह माह के आधार पर क्लर्क-कम-टाइपिस्ट पद पर काम किया। उसके बाद रोजगार कार्यालय के माध्यम से पीडब्ल्यूडी पब्लिक हेल्थ में अस्थायी तौर पर क्लर्क-कम-टाइपिस्ट पद पर काम किया।

इसके बाद अक्टूबर 1976 में पशुपालन विभाग चण्डीगढ़ में likely to be continued पद पर तदर्थ आधार पर ज्वाइन किया। सन् 1978-79 में कच्चे कर्मचारियों को पक्का करवाने के आन्दोलन में सक्रिय हुए। पशुपालन विभाग के कच्चे कर्मचारियों के संगठन में राज्य पदाधिकारी बने। छंटनी के बाद अप्रैल 1979 से दिसम्बर 1979 तक मंडी बोर्ड में क्लर्क -कम -टाइपिस्ट रहे। इसके बाद तीन साल तक बेरोजगार रहकर खेती की। बाद में न्यायालय में लंबित मामले के आधार पर जनवरी 1983 में मंडी बोर्ड में फिर से ज्वाइन किया।

यहाँ रहते हुए पंजाब विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की। सन् 1986-87 के सर्वकर्मचारी संघ के आन्दोलन में मास्टर वजीर सिंह और रामचन्द्र यादव (SFI) के साथ संपर्क हुआ। उन्हें साथ लेकर पंचकूला के कार्यालयों में सक्रिय हुआ।

इसके बाद मंडी बोर्ड हैडक्वार्टर कर्मचारियों की यूनियन बनाई और उसका महासचिव चुना गया। तीन-मई 1987 की दिल्ली रैली में पहली बार जेल में गया। इसके बाद 7-8 मई की हड़ताल मंडी बोर्ड में शतप्रतिशत रही। आन्दोलन की सफलता के बाद हुए सांगठनिक चुनाव में ब्लॉक पंचकूला और बाद में जिला का पदाधिकारी चुना गया। सितम्बर 1991 में हुए हिसार सम्मेलन में सहसचिव चुना गया। उसके लगातार एसकेएस के विभिन्न पदों पर रहा। सन् 1993 व 1995 में उन्हें उपाध्यक्ष, 1997, 1999 व 2001 में कोषाध्यक्ष, 2003 में उपमहासचिव और 2005 में वरिष्ठ उपाध्यक्ष चुना गया। सन् 2008 के करनाल सम्मेलन में उन्हें राज्याध्यक्ष बनाया गया। वे सन् 2010 में फिर उपाध्यक्ष रहे।

सन् 1977 श्रीमती सोनादेवी से विवाह हुआ। दो बेटे हैं। बड़ा बेटा एयरफोर्स से रिटायरमेंट के बाद केन्द्रीय सेवा में है और पुत्रवधू बैंक में अधिकारी है। छोटा बेटा प्राईवेट जॉब करता है और छोटी पुत्रवधू आईटीआई में इंस्ट्रेक्टर है।

छात्र आन्दोलन की मदद करने के लिए रिमूवल फ्रॉम सर्विस का नोटिस मिला था। सन् 1998 में संघ की कार्यकारिणी को हिसार गिरफ्तार किया तब चार दिन जेल में रहे। नर्सिंग आन्दोलन के दौरान पार्लियामेंट स्ट्रीट थाने में मुकादमा दर्ज हुआ जो बारह साल चला। कामरेड प्रकाश कारात और नीलोत्पल बसु के प्रयास से सभी कर्मचारियों को दोषमुक्त मानकर बरी किया गया।

सन् 2011 मोटरसाइकिल पर दुर्घटना होने के बाद घुमने-फिरने की स्थिति नहीं रहे और बड़े बेटे विजयपाल के साथ दिल्ली रहते हैं। (सौजन्य: ओम सिंह अशफ़ाक)

लेखक : सत्यपाल सिवाच

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