हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-24
अनिल शर्माः एक कुशल संगठनकर्ता व अच्छे वक्ता
सत्यपाल सिवाच
जूझते जुझारू लोग कॉलम में जब अनिल शर्मा के बारे में लिखने का सोचा तो यह समझ में नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं। फिर मैंने सोचा कि अनिल शर्मा से बात करूं तो शायद कोई ऐसा छोर पकड़ में आए जिससे बात बन जाए। इसके बाद मैंने उनको फोन लगाया और कहा कि आप से थोड़ी बात करनी है और आपके कामों के बारे में कुछ लिखना है तो उन्होंने बगैर देर लगाए तपाक से जवाब दिया – “शुरुआती दौर में मैं बहुत निकम्मा कर्मचारी रहा हूँ। मेरा कोई विशेष योगदान नहीं रहा जो आप लिखें।”
फिर उनसे बात का जो सिलसिला चला, मुझे जो समझ में आया उसके आधार पर अनिल शर्मा के बारे में आप सभी को बताता हूं। उनका जन्म 05 मई 1962 को हिसार में नान्हुलाल व श्रीमती ईश्वरी देवी के हुआ। उनके माता-पिता ने सन् 1947 में पाकिस्तान से आकर यहाँ एक मस्जिद में शरण ली थी। उनके पास पाकिस्तान की किसी संपत्ति का प्रमाण नहीं था, इसलिए यहाँ कोई जमीन नहीं मिली। अनिल शर्मा ने प्रेप (ग्यारहवीं) तक शिक्षा प्राप्त की।
इसके बाद रोजी रोटी की जद्दोजहद शुरू हुई तो बिना किसी प्रशिक्षण के बिजली बोर्ड की आफिस में डेली वेजिज आधार पर लग गए। यहाँ भ्रष्ट तंत्र का हिस्सा बन गए। लोगों से काम करवाने के बदले पैसे लेते और डीलिंग व अधिकारी से मिलीभगत से काम करवा देते। यह सिलसिला लगभग दो साल चला। बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ दी। बहन-बहनोई दोनों शिक्षक थे। वे अनिल शर्मा को अपने पास ले गए। दोनों बहुत अनुशासन प्रिय रहे। उनका भी काफी प्रभाव पड़ा। पढ़ते हुए एक मुख्याध्यापक ने उन्हें अंधविश्वास की बात न मानने पर काफी डांटा था। वे स्वभाव से धार्मिक कट्टरता के खिलाफ थे। कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता थे, लेकिन विचारों से प्रगतिशील रहे। जब वे नौकरी से बाहर थे और दोबारा ज्वाइन करने पर सेवा नियमित हो सकती थी तो एस. के. सिंगला (जो यूनियन के नेता भी थे) ने ज्वाइन करवा दिया तथा इस तरह नौकरी सुरक्षित हो गई। यह सब श्री सुभाष कौशिक के सहयोग से हुआ जो अब भी उनके घनिष्ठ मित्र हैं। सुभाष कौशिक के परामर्श और मार्गदर्शन ने अनिल शर्मा के जीवन में सकारात्मक बदलाव किया। वे उनके जरिए के.एल. शर्मा से मिले। उनकी प्रेरणा से प्रगतिशील विचारों और वामपंथी जनपक्षीय नीतियों के साथ जुड़े। उनकी सेवाएं 15 मई 1993 को टी-मेट सहायक के पद नियमित हो गई और 31 जुलाई 2019 को लाइनमैन पद से सेवानिवृत्त हो गए।
दोबारा नौकरी में जाने के बाद वे यूनियन के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में विकसित होने लगे थे। राज्य में सर्वकर्मचारी संघ के आन्दोलन की प्रतिष्ठा शिखर पर थी। वे पहले सब-यूनिट और फिर यूनिट में पदाधिकारी रहे। बाद में राज्य सचिव भी बने। सर्वकर्मचारी संघ में सन् 2000 से 2020 तक लगातार हिसार जिले के प्रधान या सचिव पद पर रहे। संघर्षों के बीच उन्हें 1993 में सेवा से बर्खास्त किया गया था जो आन्दोलन के समझौते के साथ वापस हो गया। उन्हें दो बार निलंबित किया गया और 7 दिन जेल में रहे। दो बार तबादला हुआ।
जब से अनिल शर्मा सक्रिय हुए हैं मैं उन्हें तभी से जानता हूँ। वे एक कुशल संगठनकर्ता व अच्छे वक्ता हैं। उनमें जटिल परिस्थिति में से निकलने का हुनर है। कोई भी बड़ा – छोटा काम उन्हें सौंपकर आप निश्चिंत हो सकते हैं, क्योंकि वे सक्षम होने के साथ-साथ भरोसेमंद हैं।
जब उनसे पूछा कि मौजूदा हालात और पहले के बीच कोई तुलना – आप कैसे देखते हैं? जवाब बहुत सुलझा हुआ था, बिल्कुल उनकी फितरत के अनुरूप। पहले आर्थिक लाभ होने का आकर्षण रहता था। भावावेश में अधिकतर कर्मचारी जुड़ सकते थे। अब नीतिगत स्तर के मुद्दे हैं। बौद्धिक स्तर पर कुछ काम हो भी रहा है, लेकिन तात्कालिक लाभ के बिना बड़ा आन्दोलन खड़ा करना सरल नहीं है।
उनकी राय है कि बदलाव अब भी हो सकता है। यदि हम यह मानकर सीधे टकराने से बचेंगे कि कुछ नहीं होने वाला है तो कोई नहीं जुड़ेगा। टकराव की स्थिति नहीं बनेगी तब तक आम कर्मचारी का भरोसा नहीं बनेगा। कार्यकर्ता शिक्षा जरूरी है लेकिन भिड़ने के हौसले के साथ सत्ता को चुनौती देनी चाहिए। सौजन्यः ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक – सत्यपाल सिवाच

 
			 
			 
			