उम्र नब्बे पार – जागरूकता अपार : रामगोविंद हुड्डा

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग-52

उम्र नब्बे पार – जागरूकता अपार : रामगोविंद हुड्ड

सत्यपाल सिवाच

रोहतक जिले के गांव जिन्दरान निवासी रामगोविंद हुड्डा इक्यानवें वर्ष पूरे कर चुके हैं। उम्र के हिसाब से थोड़ा ऊँचा सुनने लगे हैं लेकिन देश दुनिया की तरोताज़ा जानकारियां, राजनीतिक दलों की गतिविधियों से उनके वर्ग चरित्र का चित्रण और जन आन्दोलनों के साथ अटूट रिश्ता तथा जीत पर अकाट्य विश्वास उनके व्यक्तित्व की खासियतें हैं। मैं जवान ही था जब उनसे पहली बार मिला। सन् 1978 के आखिर या 1979 के प्रारंभ की बात है। वे हमारे गांव में मार्क्सवाद पर कक्षा लेने के लिए आए थे। इस नाते से उनका अनुयायी रहा हूँ। आप हैरान होंगे कि साधारण औपचारिक शिक्षा – दसवीं और आईटीआई में इलेक्ट्रशियन के डिप्लोमा तक पढ़ा व्यक्ति इतनी जानकारियां रखता है और उन्हें सहज ढंग से दूसरों को समझा सकता है। आन्दोलन के नये कार्यकर्ता उन्हें नहीं जानते, इसलिए बता दूं कि वे दस मिनट की मुलाकात में अहसास करवा सकते हैं कि उनके पास बहुत कुछ है।

उनसे बातचीत का सिलसिला छिड़ गया तो उन्होंने बेलाग लहजे में कुछ पुरानी बातें साझा कीं। उन पर आने से पहले उनके विषय में निजी जानकारियां साझा कर लें। स्कूल रिकॉर्ड के अनुसार उनका जन्म 10 जुलाई 1937 को श्री फूलसिंह और श्रीमती छोटो देवी के घर रोहतक जिले गांव जिन्दरान में हुआ। माँ के हवाले से उन्होंने बताया कि वे बानवें वर्ष में चल रहे हैं। दो भाई और पाँच बहनों में वे सबसे बड़े हैं। उन्होंने रोहतक के गंभीर हाई स्कूल से दसवीं करके आईटीआई से दो वर्षीय इलेक्ट्रशियन डिप्लोमा किया। वे 13 मई 1965 को बिजली बोर्ड में ए.एल.एम. नियुक्त हो गए और 31 जुलाई 1995 को जे.ई. पद से सेवानिवृत्त हुए।

रामगोविंद हुड्डा यूनियन में सक्रिय होने का कारण भी राजनीतिक जागरूकता ही माना जा सकता है। वर्षों तक हरियाणा में सीपीएम के राज्य सचिव रहे कामरेड रघुवीर सिंह हुड्डा से उनकी दोस्ती हो गई। वे असाधारण प्रतिभा के धनी थे और बहुत प्रखर व तर्कशील वक्ता थे। उनके सानिध्य में कक्षाएं लगाते हुए और स्वाध्याय करते हुए वे जागरूक बनते गए। दादरी में नियुक्ति रहते हुए वे ऐसी कक्षाएं संगठित करवाते। शुरुआत में वे एसयूसीआई के संपर्क में भी आए थे। धीरे-धीरे उनकी राजनीतिक समझ बनती गई। घटनाक्रम को राजनीतिक निहितार्थों के अनुसार समझने लगे। वे 10 जनवरी 1968 व 8-9 फरवरी 1968 की हड़तालों में भी शामिल हुए थे। सन् 1973-74 के आन्दोलन तक आते-आते बहुत प्रबुद्ध हो चुके थे।

उन दिनों बिजली की यूनियन में काकड़ौली निवासी प्यारेलाल, साईंदास कपूर और नफेसिंह दांगी बड़े नेता थे। रामगोविंद की ड्यूटी मानसरोवर पार्क स्थित सेंटर पर थी। वे यूनिट सचिव थे और सोहना निवासी साईंदास (ये साईंदास कपूर से अलग व्यक्ति हैं) अध्यक्ष थे। बंसीलाल मुख्यमंत्री थे। वे किसी भी तरह के आन्दोलनों के खिलाफ थे। बिजली से पहले कॉलेज टीचर्स 1972 में और स्कूल अध्यापक फरवरी-मार्च 1973 में सफल हड़तालें कर चुके थे। उसके पंद्रह दिन बाद ही बिजली की हड़ताल होने से बंसीलाल का पारा सातवें आसमान पर था। राज्य भर में पुलिस दमन के साथ-साथ किसानों को भड़काकर आन्दोलन को तोड़ने की मुहिम शुरू कर चुके थे। उस सूरत में हरियाणा में रहकर आन्दोलन जारी रखना आसान नहीं था। छापेमारी करके यूनियन नेताओं की गिरफ्तारी शुरू कर दी गई थी। रामगोविंद में हालात को भांपकर अगला कदम उठाने की अनोखी क्षमता रही है। उन्होंने अपने साथियों से भूमिगत होकर काम करने को कहा। एकाध दुस्साहसी और अनाड़ी कार्यकर्ता को लगा कि वे ख्वामखाह डरा रहे हैं। जिन्होंने रात का ठिकाना नहीं बदला और धरे गए।

रामगोविंद ने अपने अध्यक्ष साईंदास को परिवार को सोहना छोड़कर दिल्ली आने के कह दिया। खुद अगले दिन दिल्ली पहुंचे। वहाँ ट्रेड यूनियन नेताओं की मदद के साथ तालमेल से बीमा कर्मचारी हड़ताली कैम्प में खाने-पीने की व्यवस्था संभाल रहे थे। वहाँ उन्हें प्यारेलाल, साईंदास कपूर और अन्य राज्य नेता मिले। दिल्ली के ठिकानों पर भी हरियाणा पुलिस छापे मारकर नेताओं को गिरफ्तार कर रही थी। तब रामगोविंद ने अपने स्कूल समय के एक मित्र, जो दिल्ली पुलिस में थे, की मदद से उसकी मौसी (जो सीपीआई की सदस्य थी) के घर पर रूकने की व्यवस्था करवाई।

वे यूनियन में भले ही यूनिट स्तर के पदाधिकारी तक ही रहे, लेकिन राजनीतिक सूझबूझ और सम्पर्कों की वजह से जमीनी स्तर के प्रबंध करवाने में माहिर थे। इस बीच दो महत्वपूर्ण घटनाएं हुई। रामलीला मैदान इलाके कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री को ज्ञापन दिया कि हरियाणा के कर्मचारियों की वजह से उन्हें परेशानी हो रही है। दूसरे नफेसिंह दांगी अपने परिवार के एक कांग्रेस कार्यकर्ता के जरिए रास्ता निकालने की बात कहकर चला गया और उसने चौधरी सुलतान सिंह और रणबीर सिंह के जरिए हड़ताल वापस लेने का बयान लगवा दिया। नेतृत्व ने इसकी सहमति नहीं दी तो सरकार ने बलपूर्वक रात को रामलीला मैदान खाली कराने की योजना बना ली।

इस बीच माकपा सांसद ज्योर्तिमय बसु और कुछ अन्य ने मिलकर संसद में मामला उठाया। कामरेड हरकिशन सिंह सुरजीत ने कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं को समझाया कि हड़ताल वापस नहीं हुई तो सरकार को कर्मचारियों ही नहीं, किसानों के विरोध का सामना करना पड़ सकता था। इस घटनाक्रम के पीछे रामगोविंद के प्रयास शामिल था जो वे कामरेड रघुवीर सिंह हुड्डा के मार्फत कामरेड सुरजीत के जरिए कर रहे थे।

21 अप्रैल1973 को संदेश मिला कि बाइस को सुबह छह बजे बिजली बोर्ड के चेयरमैन पी.एन.साहनी यूनियन से दिल्ली में बात करेंगे। सुरजीत ने हमारे साथियों को समझा दिया था कि वे बिना घबराहट के बात करें। रास्ता निकल जाएगा। वर्कचार्ज कर्मचारियों के लिए सेवा सुरक्षा का मुद्दा बड़ा था। सरकार की ओर से दो पेज की चिट्ठी निकल गई, लेकिन कर्मचारी नेता एकमत नहीं हो पाए। प्यारेलाल और कपूर में भी मतभेद पैदा हो गए। यूनियन ने पाँच सदस्यों की एडहॉक कमेटी बना दी जिसमें रामगोविंद भी शामिल थे। इसके बाद कर्मचारी तालमेल कमेटी बनी, लेकिन रोडवेज के भीमसिंह द्वारा भीतरघात के चलते वह प्रयोग असफल रहा।

आपातकाल का दौर आया। उसके बाद यूनियनों में बिखराव की स्थिति बन गई। प्यारेलाल, कपूर, धारासिंह आदि अब एक पाले में रहे। प्रेमसागर शर्मा, जयपाल और बनवारीलाल आदि दूसरे में। अन्ततः सन् 1981 यूनियन टूट गई। रामगोविंद नये उभरते गुट के साथ रहे। प्रेमसागर शर्मा, जयपाल, बनवारीलाल और अमरनाथ बाऊ जी आदि इनके पक्ष के प्रमुख नेता रहे। हालांकि जयपाल जल्दी छोड़ गए।

इसी अरसे में वामपंथी विचारधारा के साथ और अधिक गहराई से जुड़ गए थे। रामगोविंद को जमीनी स्तर पर काम करना अधिक पसंद है। बिजली की नयी यूनियन धीरे-धीरे वैचारिक दृष्टि से मजबूत होने लगी तो इसका जनाधार भी बढ़ता गया। सन् 1986-87 में सर्वकर्मचारी संघ बन गया तो बिजली कर्मचारियों पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई। रामगोविंद इस अरसे में लगातार सक्रिय रहे। यद्यपि उन्होंने बड़े पदों पर हमेशा युवाओं को आगे बढ़ाया लेकिन काम में गतिशील बने रहे।

वे सन् 1995 से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उसके बाद भी जनवादी आन्दोलन में, सामुदायिक गतिविधियों में सक्रिय रहते हैं। वर्षों तक सैक्टर 4 एक्सटेंशन में रेजिडेंट वैल्फेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे। प्रगतिशील मूल्यों से लगाव इतना अधिक है कि सैक्टर में हर आन्दोलन के लिए धनसंग्रह करवाते रहे हैं। यदि पार्टी या किसी जनसंगठन के लोग मिलने चले जाते हैं तो उन्हें बिना मांगे आर्थिक सहयोग अवश्य देते हैं। उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं। उनकी पत्नी सहित पूरा परिवार उनके निर्णयों का सम्मान करता है। चारों बच्चे विवाहित हैं। परिवार दो पोते और एक पोती के अलावा तीन दोहते और एक दोहती है। दोहती जेएनयू में एस एफ आई में सक्रिय है। (सौजन्य: ओम सिंह अशफा़क)

  लेखक : सत्यपाल सिवाच

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