हरियाणाः जूझते जुझारू लोग – 39
मास्टर शुगनचंद शर्मा- निलंबन, बर्खास्तगी, जेल यात्रा भी नहीं तोड़ पाया आंदोलन का जज़्बा
सत्यपाल सिवाच
सरकारी सेवा में शिक्षक बनने के कुछ महीने बाद रामकुंडी लाडवा में हुई एक बैठक में शुगनचन्द शर्मा जी से मुलाकात हुई। वहाँ दर्जनों साथी थे लेकिन उनके सधे हुए लहजे, नपे-तुले शब्द, गरिमामय सम्बोधन और उनके चेहरे पर मौजूद शालीनता के चलते उनकी ओर विशेष रूप से आकर्षित हुआ।
शुगनचंद शर्मा का जन्म करनाल जिले के गांव खरींडवा में 31 जुलाई 1938 को हुआ था। उनके पिता पूर्णचंद प्रकांड ज्योतिषी थे। तीन वर्ष की अल्पायु में ही शगुनचंद की माता जी की मृत्यु हो गई। वे मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात डिप्लोमा करके प्राथमिक शिक्षक नियुक्त हो गए। शिक्षक बनने से पहले वे कुछ समय तक पंचायत सचिव भी रहे। शुरुआती दिनों में ही वे हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ से जुड़ गए थे। वे जुलाई 1996 में मुख्य शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हुए।
वे सन् 1973 की ऐतिहासिक अध्यापक हड़ताल के समय पूरी तरह आन्दोलन में सक्रिय हो गए थे। वे उन दिनों करनाल जिले के भादसों के प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत थे। उन दिनों कुरुक्षेत्र भी करनाल का भाग था। आन्दोलन के दौरान ही उन्हें समालखा खंड में भेज दिया गया था। आन्दोलन के बाद चढ़ूनी में आए।
उनका यूनियन का कैरियर भी कम रोचक नहीं है। शाहाबाद खण्ड के प्रधान, थानेसर सब डिवीजन के प्रधान व सचिव, कुरुक्षेत्र जिले के कोषाध्यक्ष व सचिव से राज्य कार्यकारिणी सदस्य तक विभिन्न पदों पर काम करते हुए उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। अपने सौम्य व्यवहार, संयमी जीवन, धैर्य, मृदु वाणी, सेवा संबंधी मामलों की सूझ-बूझ तथा अध्यापकों के अटके कामों को सुलझाने के कौशल से उन्होंने एक अलग पहचान बना ली थी। वे बहुत शांत स्वभाव के थे। आत्मीय स्वभाव के चलते वे सभी के साथ घनिष्ठता से जुड़ जाते थे। यूनियन के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ अधिकारी भी उन्हें पसंद करते थे। साथ ही वे अध्यापकों के हितों की रक्षा के प्रति बहुत दृढ़ रुख अपनाते थे। गलत पोजिशन लेने पर वे अधिकारियों को भी बेबाक ढंग से गलती का अहसास करवा देते थे।
अध्यापक संघ के नेता के रूप में उन्होंने कभी भी त्याग और बलिदान भाव से पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे पहली बार सन् 1973 की हड़ताल में जेल में रहे। इसके बाद सन् 1980 के आन्दोलन में भी वे चण्डीगढ़ की बुड़ैल जेल में रहे। सन् 1986-87 के सर्वकर्मचारी संघ के ऐतिहासिक आन्दोलन में वे कुरुक्षेत्र जिले अग्रणी कार्यकर्ताओं में शामिल रहे। सन् 1991और 1993 के आन्दोलन में भी उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने निलंबन, बर्खास्तगी, जेल यात्रा समेत सभी प्रकार के उत्पीड़न का साहस के साथ सामना किया। जुलाई 1996 में सेवानिवृत्ति तक पूरे सेवाकाल में वे कभी आन्दोलन से पीछे नहीं हटे और प्रत्येक हड़ताल में सम्मिलित रहे।
वे कितने सच्चे और निष्पक्ष बात कहने वाले थे, इसके लिए एक प्रसंग साझा करना चाहूंगा। एक शिक्षक ने अपने स्कूल अध्यापिका के साथ गलत हरकत करने की कोशिश की थी। यूनियन के नाते यह जानकारी हमें मिली तो हमने शिक्षक से पूछा। उसने गांव के सरपंच की उपस्थिति में अध्यापिका से माफी मांग ली। मामला खत्म कर दिया गया। बाद में किसी और मामले में वह अध्यापक पुलिस द्वारा पकड़ा गया। उसने मन ही मन बैठाई खुंदक में मेरे खिलाफ प्रचार कर दिया कि उसे मैंने पकड़वाया था। रादौर में शिक्षकों की पंचायत रख दी गई। यूनियन की ओर से शुगनचन्द जी को बुलाया गया था। ऐसा माना जा रहा था कि वे मेरे खिलाफ फैसला सुनाएंगे, क्योंकि आंतरिक कारणों से वह शिक्षक पुराने स्थानीय शिक्षक नेताओं का खास रहा था और मुझे “रोहतकी” बताकर अलग – थलग डालने का प्रयास किया जा रहा था।
खैर, पंचायत शुरू हुई। शर्मा जी ने उस अध्यापक, शिकायतकर्ता अध्यापिका और उसके पति व मेरा पक्ष सुना। फिर उन्होंने जो बताया वह उनकी “सच तक पहुंचने की प्रक्रिया व पारदर्शिता” को दर्शाता है। उन्होंने रादौर आने पर सबसे पहले बीईओ से मुलाकात कर पूछा कि क्या सम्बन्धित अध्यापिका ने आपको शिकायत की थी? यदि हाँ तो आपने क्या एक्शन लिया? बीईओ भी मेरे से नाराज था। फिर भी बीईओ ने शर्मा जी को हकीकत बताई कि महिला की शिकायत सच थी। मैंने भी शिक्षक को बुलाकर समझाया था और कार्रवाई करने धमकी दी थी लेकिन उसे सुधरने का अवसर देने के लिए उसके भरोसे पर चेतावनी देकर छोड़ दिया था। दूसरी बार महिला और उसका पति मेरे पास आए। वे मेरे आश्वासन से असन्तुष्ट होकर मुझे बताकर पुलिस स्टेशन चले गए। सत्यपाल कॉमरेड पहले वाली घटना के बाद बीच में नहीं थे। शुगनचंद जी ने सम्बन्धित शिक्षक की भर्त्सना की और कहा कि यूनियन के हिसाब से मेरा स्टैंड सही था। और जो दो तीन लोग “अध्यापक को थाने में पिटवा दिया” को मुद्दा बना रहे हैं वे गलत हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि “यदि अध्यापिका पंचायत या प्रशासन की कार्रवाई से सन्तुष्ट नहीं हैं तो हम अध्यापिका के साथ हैं।”
एक सच्चे खरे इन्सान और सर्वमान्य पंचायती व्यक्ति के रूप में उनकी छवि बन चुकी थी। इसीलिए सेवानिवृत्ति के पश्चात् सन् 2000 में गांववासियों ने उनकी पत्नी को सरपंच की जिम्मेदारी सौंपी। गांव वाले उनके जरिए से शर्मा जी की सेवाओं का उपयोग करना चाहते थे। इस उत्तरदायित्व को भी उन्होंने बहुत समर्पण और सेवाभाव से निभाया। सन् 2005 में वे पंच भी रहे। इसी दौरान वे हरियाणा सामुदायिक वानिकी परियोजना के चेयरमैन रहे। संगठन के अनुभव के चलते वे गांव के सांझा कार्यों के लिए भी आन्दोलन संगठित करने में अग्रणी रहे।
उन्होंने सेवाकाल में चढूनी, भादसों, समालखा और यारा के विद्यालयों में काम किया। वे अपने विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों के बीच बहुत प्रिय रहे। उनके लिए शिक्षक होना नौकरी नहीं, सेवा का पवित्र कार्य रहा। उनकी जीवन साथी चम्पादेवी भी सामाजिक कार्यों में जुड़ी रहती हैं। उनकी बड़ी बेटी जफरपुर व छोटी ऋषिकेश में विवाहित हैं। बड़े पुत्र शिवकुमार कुरुक्षेत्र कोर्ट से रीडर पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। छोटे पुत्र डॉ. देवराज मारकंडा नेशनल कॉलेज, शाहाबाद में प्रोफेसर हैं। उनकी दो पोतियां और दो पोते हैं।
20 दिसम्बर 2023 को लगभग साढ़े पचासी वर्ष की आयु में शुगनचंद जी का देहावसान हो गया। कुछ समय तक बीमार रहे, सामान्यतः वे स्वस्थ ही रहे और सामाजिक कार्यों में रुचि लेते रहे। वे सशरीर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी स्मृति सदैव प्रेरणा देती रहेगी। दो जनवरी 2024 को खरींडवा में आयोजित स्मृति सभा में सर्वकर्मचारी संघ के दिग्गज नेता रहे मास्टर शेर सिंह व बाबूराम गुप्ता, यूनिवर्सिटी फेडरेशन के नेता मान सिंह, रिटायर्ड कर्मचारी संघ के प्रधान जरनैल सिंह सांगवान, एसकेएस व अध्यापक संघ के सत्यपाल सिवाच, ऊधम सिंह राठी, शकुंतला शर्मा, नवलकिशोर नवल, महीपाल चमरोड़ी, प्यारेलाल तंवर, महावीर दहिया, नाथूराम पांचाल, शाहबाद के विधायक रामकरण काला, पूर्व सांसद कैलाशो सैनी समेत अनेक सामाजिक संगठनों के नेताओं की उपस्थिति उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के विस्तार का संकेत दे रही थी। सौजन्य-ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच
