प्रदूषण से संबंधित बीमारियों से निपटने के लिए राज्य चेस्ट क्लीनिक’ का संचालन सुनिश्चित करें

प्रदूषण से संबंधित बीमारियों से निपटने के लिए राज्य चेस्ट क्लीनिक’ का संचालन सुनिश्चित करें

केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जारी किया परामर्श

 

नयी दिल्ली। केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को एक अद्यतन परामर्श जारी कर वायु प्रदूषण से संबंधित बीमारियों से निपटने के लिए अपने राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनपीसीसीएचएच) के तहत सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं और मेडिकल कॉलेजों में ‘चेस्ट क्लीनिक’ का संचालन सुनिश्चित करने को कहा है।

परामर्श में कहा गया कि चरम वायु प्रदूषण वाले महीनों (आमतौर पर सितंबर से मार्च) के दौरान, इन क्लीनिक से प्रतिदिन कम से कम दो घंटे की निश्चित अवधि तक काम करने की उम्मीद की जाती है।

तत्काल कार्रवाई के निर्देश जारी करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 33 पेज के दिशानिर्देश भेजे हैं, जिसमें कहा गया कि प्रदूषण के कारण श्वसन और हृदय संबंधी बीमारियों के मामले बढ़ते हैं, इसलिए अस्पतालों को विशेष तैयारी रखनी होगी।

इसमें कहा गया कि ये चेस्ट क्लीनिक शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में स्थापित किए जा सकते हैं।

परामर्श में कहा गया है कि वे जोखिम वाले कारकों के लिए रोगियों की जांच करेंगे तथा प्रदूषण के कारण बढ़े श्वसन और हृदय रोगों से पीड़ित रोगियों का उपचार और दीर्घकालिक देखभाल करेंगे।

मंत्रालय ने स्वास्थ्य सुविधाओं को राज्य या राष्ट्रीय स्तर के डिजिटल उपकरणों जैसे एकीकृत स्वास्थ्य सूचना मंच (आईएचआईपी) के माध्यम से इन रोगियों के रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए भी कहा है।

साथ ही कहा गया है कि उच्च जोखिम वाले रोगियों के रूप में पहचाने जाने वाले व्यक्तियों का एक रजिस्टर बनाया जाना है, और ऐसे लोगों का विवरण संबंधित ब्लॉकों के आशा, एएनएम और सीएचओ के साथ भी साझा किया जा सकता है।

परामर्श में श्वसन और हृदय संबंधी मामलों में उपचार व देखभाल के लिए डॉक्टरों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने का आह्वान भी किया गया है।

मुख्य सचिवों को लिखे एक पत्र में, केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव पुण्य सलिल श्रीवास्तव ने कहा कि सर्दियों के महीनों के दौरान, देश भर के कई क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता अक्सर ‘खराब’ से ‘गंभीर’ स्तर तक पहुंच जाती है, जो एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चुनौती पैदा करती है।

उन्होंने पत्र में कहा, ‘‘एक साथ मिलकर हम एक स्वस्थ, स्वच्छ और अधिक लचीले पारिस्थितिकी तंत्र की दिशा में काम कर सकते हैं।’’

परामर्श में कहा गया है कि विशेष रूप से पांच साल से कम उम्र के बच्चे, बुजुर्ग, गर्भवती महिलाएं, अस्थमा या हृदय रोग के मरीज, सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति वाले लोग और बाहर कामकाज करने वाले लोगों को सबसे ज्यादा जोखिम है।

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