हरियाणाः जूझते जुझारू लोग – 38
धुरेन्द्र सिंह चौहान – पटवारियों का नेता, जिसका सीएम कैरों ने भी किया सम्मान
सत्यपाल सिवाच
धुरेन्द्र सिंह चौहान को पुराने कर्मचारी नेता जानते हैं। वर्तमान नेताओं और कर्मचारियों को उनके बारे में बता रहा हूँ। ऐसे लोग विरले ही होते हैं जिन्हें दशकों तक निर्विवाद रूप से नेता स्वीकार किया जाए। वर्ष 1954 से 1977 में सेवानिवृत्त तक धुरेन्द्र सिंह चौहान रेवेन्यू पटवारी एवं कानूनगो एसोसिएशन के सर्वमान्य नेता रहे। पंजाब में रेवेन्यू पटवार एसोसिएशन उनकी स्मृति में आज भी अपने मुख्यालय पर कार्यक्रम का आयोजन करती है। हरियाणा में पटवार एसोसिएशन के नेतृत्व को पंजाब वालों से ऐसी महान शख्सियत के बारे में पता चला। मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि अपने गौरवशाली इतिहास के ऐसे प्रसंगों को याद किया जा रहा है।
सन् 1981 की बात है। आर्य हायर सेकेंडरी स्कूल पानीपत के परिसर में हरियाणा सबआर्डिनेट सर्विसेज फेडरेशन की बैठक में धुरेन्द्र सिंह चौहान को विशेष रूप बुलाया गया था। संयोगवश मैं भी उस बैठक में पहुंचा था। चौहान जी का संक्षिप्त संबोधन बहुत सटीक और मौके के अनुरूप था। बाद में उनसे थोड़ी गुफ्तगू भी हुई। वे सफेद चादर की तरह बेदाग जीवन को कार्यकर्ताओं के लिए जरूरी मानते थे। सादगी और साफगोई उनकी विशेष पहचान थी। दोबारा उनसे मुलाकात नहीं हो पाई।
वे ऐसी शख्सियत के स्वामी थे जिन्हें संयुक्त पंजाब और अस्सी के दशक तक हरियाणा के सभी कर्मचारी जानते थे। धुरेन्द्र सिंह चौहान गुड़गांव जिले (अब पलवल) के मितरोल गांव निवासी थे। एक बार के ही अल्पकालीन मिलन की छाप अभी तक मेरे मन पर अंकित है। बाद में पुराने साथियों से पता चला कि वे संयुक्त पंजाब में रिवेन्यू पटवार-कानूनगो यूनियन के मुख्य संगठनकर्ताओं में शामिल थे। वे 1953 में गुड़गांव जिले के अध्यक्ष चुने गए थे। अगले ही वर्ष उन्हें पंजाब राज्य का अध्यक्ष चुन लिया गया। उस समय वेतनमान को लेकर रेवेन्यू पटवार एसोसिएशन आन्दोलनरत थी। सभ प्रकार के प्रयासों के असफल हो जाने पर 1956 में हड़ताल शुरू कर दी गई। मुख्यमंत्री प्रतापसिंह कैरों की छवि बहुत कठोर प्रशासक की थी। उन्हें इसका अहसास नहीं था कि उनके खिलाफ कोई पटवारी हड़ताल पर चला जाएगा, लेकिन यहां तो सभी पटवारी हड़ताल पर रहे। कैरों साहब ने बात नहीं की। अन्ततः उनके निवास स्थान पर पड़ाव डालने का ऐलान कर दिया गया। बताते हैं कि पड़ाव के पहले ही दिन प्रधान धुरेन्द्र सिंह का ओजस्वी सम्बोधन आवास की ड्योढ़ी पर बैठकर कैरों साहब की माँ और पत्नी ने सुना। परिवार में बातें चलती थीं। मुख्यमंत्री की माता जी परांत-भर लड्डू लेकर पड़ाव के बीच में पहुंच गई और कहा- ” पुत, तू वैसा ही जैसा मैंने सुना था। तेरा नाम ठीक ही “धुरंधर” है। तुम्हें सफलता मिलेगी।
कहते हैं कि कैरों साहब माँ से नाराज भी हुए। माँ ने कह दिया – मेरे वास्ते ऐसा ही पुत तू है तो ऐसा धुरेन्धर। खैर, प्रताप सिंह कैरों ने बात मान ली और पटवारियों का वेतन 25 रुपए मासिक से 120 रुपए कर दिया गया। इस आन्दोलन को असफल बनाने के लिए धुरेन्द्र जी को तहसीलदार लगाने की पेशकश की गई थी जिसे उन्होंने तत्काल ठुकरा दिया था।
बाद के कुछ वर्षों में रणबीर सिंह ढिल्लों, अवतार सिंह, प्रेम गुप्ता, त्रिलोचन सिंह राणा आदि के साथ मिलकर पंजाब सबआर्डिनेट सर्विसेज फेडरेशन का गठन करने वालों में प्रमुख साथियों में वे सम्मिलित रहे। हरियाणा राज्य बनने के बाद वे पटवार-कानूनगो यूनियन के साथ-साथ फेडरेशन में भी सक्रिय रहे। बाद में सन् 1961 में प्रताप सिंह कैरों ने औरंगाबाद और मितरोल में अपना कार्यक्रम रखवा दिया और उन्होंने आग्रह किया कि वे धुरेन्द्र सिंह के घर पर ही खाना खाएंगे। उन्हें लगता था कि उनसे टक्कर लेने वाला नेता किसी खाते-पीते परिवार का ही होगा। मुख्यमंत्री आए तो उन्होंने मितरोल और औरंगाबाद गांवों की अनेक मांगें भी मानीं। उनके भोजन का इन्तजाम चौपाल में किया गया था। कैरों साहब उनका घर देखने भी गए जो कच्चा और झोपड़ीनुमा था।
वे सामान्य परिवार में पैदा हुए। सादगी का जीवन जीया। आज जिस तरह के सवाल खड़े हो जाते हैं, वे उसी समय कहा करते थे – सच्चाई का जीवन, ईमानदारी का जीवन और सादगी जीवन जीते रहे। पटवारियों से आग्रह किया करते थे। लोगों की निस्वार्थ सेवा करोगे तो न्याय के लिए लड़ पाओगे।
15 दिसंबर 2024 को रिवेन्यू पटवार-कानूनगो एसोसिएशन के सिरसा सम्मेलन में पंजाब के साथी मोहन सिंह ने बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। इस मौके धुरेन्द्र सिंह चौहान के बेटे जसपाल सिंह भी सपरिवार मौजूद थे। उन्होंने भी अपने पिता जी की शिक्षाओं के बारे में विस्तार से बताया। वे अपने बच्चों को सादगी, ईमानदारी और प्रतिष्ठा का जीवन बिताने की शिक्षा देते थे। जसपाल सिंह ने बताया कि हम उनकी बातों पर टिके हैं। धुरेन्द्र सिंह के बड़े बेटे कॉलेज में प्रोफेसर हैं और छोटे जसपाल सिंह हरियाणा पुलिस में एस. आई. हैं।
धुरेन्द्र 10 मई 1993 को संसार से अलविदा हो गए। पंजाब की रेवेन्यू पटवार और कानूनगो यूनियनें हर साल उन्हें याद करते हैं और उनके परिवार के संपर्क में हैं। हरियाणा के मौजूदा पटवारियों को यह जानकर प्रेरणा मिली है। सौजन्य: ओम सिंह अशफ़ाक।

लेखक: सत्यपाल सिवाच
