जसबीर कौर – वाकई वीरांगना

हरियाणाः जूझते जुझारू लोग- 35

जसबीर कौर – वाकई वीरांगना

सत्यपाल सिवाच

सन् 1998 का वाकया है। बंसीलाल राज्य के मुख्यमंत्री पद पर आसीन थे। हविपा-भाजपा की साझा सरकार थी। बंसीलाल सर्वसत्तावादी, तो उनके साथी भाजपाई पितृसत्ता और मनुस्मृति के मानने वाले। महिलाएं सामने से बोलें और वे भी सरकारी कर्मचारी … कहाँ बर्दाश्त होना था। एक तरह की जंग छिड़ गई थी और महारानी लक्ष्मीबाई की तरह शौर्य का अप्रतिम प्रतीक बनी जसबीर कौर के नेतृत्व में हरियाणा नर्सिंग स्टाफ एसोसिएशन। राज्य की बहादुर बेटियों ने जबरदस्त लड़ाई लड़ी। भले ही वह लड़ाई 34 नर्सिज की नौकरी से बर्खास्तगी और अनेक मुकदमों के बावजूद मुकाम तक नहीं पहुंच पाई, लेकिन उसने जुझारू संघर्षों और जांबाज लड़ाकुओं ने एक ऐसी मिसाल कायम कर दी थी जिसे लेकर स्वयं बंसीलाल ने भी शर्मसार महसूस किया होगा।

आज आपका परिचय ऐसी ही एक महान कर्मचारी नेत्री जसबीर कौर से करवा रहा हूँ जिनका नाम लगभग डेढ़ दशक तक राज्य के कर्मचारी आन्दोलन में छाया रहा। जसबीर का जन्म हिसार जिले के गांव शक्करपुरा (अब फतेहाबाद) में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। माता सुश्री रणजीत कौर और पिता सरदार काबुलसिंह के चार लड़कियां और तीन बेटे हुए। जसबीर उनकी तीसरी सन्तान थी। हरियाणा में उन दिनों लड़कियों की शिक्षा आम बात नहीं थी। गांव में प्राइमरी तक स्कूल था लेकिन माता पिता की इच्छा थी कि बेटी उच्च शिक्षा प्राप्त करके योग्य बने। स्कूल के लिए धारसूल कलां जाना पड़ता था। बीच में रंगोई नाला पड़ता है। उसे पार करके पहुंचना उन दिनों बड़ा मुश्किल और जोखिम वाला काम था। जसबीर को भविष्य में “जस” पाना था, इसलिए पढ़ाई जारी रखी। जसबीर कौर स्कूल शिक्षा तक नहीं रुकी। आई.जी कॉलेज टोहाना में प्रवेश ले लिया और 1984 में स्नातक उपाधि प्राप्त की। वह कॉलेज की हाकी टीम में शामिल रहीं। इसके अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेतीं जिसमें उन्होंने इंटर यूनिवर्सिटी प्रतियोगिता में भाग लेने का अवसर मिला।

कॉलेज में पढ़ते हुए वे प्रगतिशील एवं लोकतांत्रिक संगठन एस.एफ.आई. से जुड़ गईं। इस दौरान उस पर ए.बी.वी.पी. के गुण्डों ने हमला भी किया, लेकिन जसबीर धैर्यवान और साहसी हैं। वे न डरीं और न पीछे हटीं। इसके बाद उनका हौसला बढ़ता गया। वे ‘स्नातक’ डिग्री तक भी नहीं रुकीं। उन्होंने ‘पंजाबी साहित्य’ और ‘राजनीति शास्त्र’ में एम.ए. डिग्री हासिल की। उन्होंने ‘नर्सिंग में डिग्री’ हासिल की। यहाँ पढ़ते हुए नर्सिंग छात्राओं का ‘स्टाइपेंड’ 100 रुपए से 500 रुपए करवाने में सफलता प्राप्त की।

वे सन् 1994 में स्वास्थ्य विभाग हरियाणा में स्टाफ नर्स के रूप में नौकरी में आईं और आने के कुछ ही समय बाद नर्सों संगठित करना शुरू किया। इससे पहले नर्सिज स्थानीय स्तर पर ही कभी कभार इकट्ठा होती थीं। वे नर्सिंग एसोसिएशन की राज्य प्रधान चुनी गईं और कई वर्षों तक आन्दोलन का नेतृत्व किया। सन् 1998 में बंसीलाल-भाजपा सरकार के समय वेतन संशोधन के समय बड़ी लड़ाई लड़ी। अठावन दिन लम्बी हड़ताल ने अपने ढंग का नया रिकॉर्ड बना दिया। इस यूनियन केवल महिलाएं ही थीं। उन्हें अपने आन्दोलन के साथ घर में भी सामंजस्य स्थापित करना था। निर्दयी शासन ने महिलाओं पर पितृसत्ता के चाबुक को चलाया। सरकार की शह पर पति एसोसिएशन बनाई गई। जेल गईं नर्सों के पति, सास-ससुर, बच्चों तक के जरिए इमोशनल ब्लैकमेलिंग की गईं।

स्वास्थ्य मंत्री बेशर्मी पर उतर आए और बोले – “बेटी बाप से मांगती थोड़े ही है। जो मुट्ठी बंद कर दे दिया उसे चुचकार लेती है। सामान्य तरीक़े से घी नहीं निकला तो न्यायालय में याचिका लगवाई गई। कोर्ट ने व्यवस्था दी – नर्स का काम ‘नाइटिंगेल’ की तरह निष्काम सेवा है। हड़ताल गलत है। सब तरह हथकंडे अपनाए गए। बर्बरता से दमन किया गया। दिल्ली में प्रदर्शन के मौके पर पुलिस के हमले में सर्वकर्मचारी संघ के नेता पूनमचंद रती की आँख स्थायी रूप से खराब हो गई। कुल 34 नर्सों को नौकरी से निकाल दिया जिनमें जसबीर कौर भी शामिल थीं। वे सभी डेढ़ साल बाद बंसीलाल की सरकार गिरने के बाद बहाल हुई।

जसबीर के काम की कोई सीमा नहीं थी। उन्होंने सन् 1991-94 तक साक्षरता आन्दोलन में बढ़चढ़कर भाग लिया। वे सांस्कृतिक टीम की सदस्य रहीं। सन् 1990-93 तक हिसार में जनवादी महिला समिति में सक्रिय रहीं और जिला सचिव के रूप में काम किया। वे सन् 1997 में पहली बार सर्वकर्मचारी संघ में आईं और राज्य में सहसचिव चुनी गईं। सन् 1999, 2003 व 2005 में राज्य सचिव, 2008 और 2010 में उपाध्यक्ष चुनी गईं। वे अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ की महिला उपसमिति की सदस्य रहीं और हरियाणा कामकाजी महिला समिति की संयोजक बनीं। स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कत के चलते उन्होंने 30 सितंबर 2019 को नर्सिंग ट्यूटर पद से ऐच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी।

जसबीर कौर ने अपने माता पिता की सम्मति लेकर अपनी पसंद से मुंढाल निवासी एस.एफ.आई नेता प्रदीप सिंह से विवाह किया। वे लम्बे समय तक माकपा के हिसार जिला सचिव और राज्य सचिवमंडल सदस्य रहे। अब कामरेड प्रदीप सिंह हमारे बीच नहीं रहे। जसबीर कौर को भी बीमारी से जंग के नवजीवन ही मिला हुआ है। उन्होंने एक दशक से अधिक काफी कष्टपूर्वक बिताया है। उनके दो बेटे हैं और फिलहाल अनेक वर्षों से हिसार में रह रही हैं। सौजन्य- ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच

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