हमारा ज़िक्र यक़ीनन गली गली होगा

पुस्तक समीक्षा

हमारा ज़िक्र यक़ीनन गली गली होगा

जयपाल

 

मौन आहों में बुझी तलवार, ओम सिंह अशफ़ाक के कवि-व्यक्तित्व की भावपूर्ण संवेदनशील अभिव्यक्ति है।  विधा के तौर पर भले ही इसे संस्मरण कह दिया जाए लेकिन हर संस्मरण एक कविता की तरह है। ग्यारह संस्मरण- ग्यारह कविताएं !!

पुस्तक में जिन साहित्यिक विभूतियों  पर चर्चा की गई है उनमें हम सबके जाने-पहचाने नाम हैं-शमशेर बहादुर सिंह, शिव कुमार मिश्र, ओ. पी. ग्रेवाल, आबिद आलमी,भगवत रावत,ओम प्रकाश वाल्मीकि,  ललित कार्तिकेय, तारा पांचाल, सरबजीत, रामेश्वरम दास गुप्त और कृष्ण कुमार भारतीय । सभी चिर-परिचित और साहित्यिक जगत में विख्यात रचनाकारों को एक साथ जानना- समझना अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है। ओम सिंह अशफाक का इन रचनाकारों के साथ किसी न किसी रूप में निकट का सम्बन्ध रहा है। इस संबंध का उन्होंने रचनात्मक उपयोग किया है l ओमसिंह अशफाक मनमोहन के माध्यम से कहते हैं कि शमशेर हिंदी जगत के लिए पहेली की तरह हैं। शमशेरीयत एक अलग एवं विलक्षण चीज़ है । शमशेर को किसी आलोचक ने हिंदी कविता का अपवाद भी कहा है क्योंकि उनकी पहले से कोई परंपरा नहीं मिलती, यह उनके महत्त्व का तो प्रमाण है ही, हिंदी आलोचना के समक्ष शमशेर एक चुनौती भी हैं।

प्रो. शिव कुमार मिश्र को अशफ़ाक पिता की तरह याद करते हैं । उन्हें याद करते हुए वे कहते हैं–शिव कुमार मिश्र का जाना, हिंदी जगत में सक्रिय विमर्श और रचनात्मक आलोचना के एक स्तंभ का उखड़ जाना है।  समकालीन परिदृश्य में इस आयु में बहुत कम आलोचक होंगे जो पूरे भारत का भ्रमण करते हुए साहित्य विमर्श में संलग्न हो कर नई पीढ़ी और युवा रचनाकारों का मार्ग दर्शन करते हुए उनके प्रेरणा स्रोत बन जाने की क्षमता रखते हैं । भगवत रावत अपनी सहज और गहरी कविताई के लिए जान जाते हैं। जनकवि अशफ़ाक उन्हें ‘लोकधर्मी-नफ़ासत का कवि’ कहते हुए उनकी कविताओं के माध्यम से याद करते हैं।यहां उनकी दो कविताओं- ‘आओ हिरामन’ और ‘रूप कुमार’ का विशेष रूप से उल्लेख है ।

“हर शहर के होते हैं/अपने-अपने रूप कुमार/किंतु बिरले होते हैं/वे जो उड़ते-उड़ते हो जाते हैं/ राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और कहलाने लगते हैं/भगवान रूप कुमार। उनकी वाणी में अमृत होता है/आँखों में सम्मोहन/चेहरे पर तेज / और हाथों में चमत्कार/ आदमी तो अपनी लड़ाई लड़ रहा है/और राजकुमार जी उसके आईने में अपनी ही छवि निहार रहे हैं।”

इसी प्रकार अशफ़ाक अंबाला के अद्भुत शायर आबिद आलमी(प्रो. राम नाथ चसवाल) को याद करते हुए लिखते है–  रात भर लोग अंधेरे की बली चढ़ते हैं, आबिद  इस शहर में तब जाके सहर होती है! इस लेख में आबिद आलमी के संघर्ष पूर्ण जीवन और उनकी अव्वल दर्जे की शायरी को दर्ज किया गया है ।

ओम सिंह अशफ़ाक सबसे अधिक निकट डॉ ओम प्रकाश ग्रेवाल के रहे हैं। दोस्त, भाई और पारिवारिक सदस्य की तरह ओमसिंह जी ने उनका साथ अंत तक निभाया है । डॉक्टर ग्रेवाल जनवादी लेखक संघ, जन वादी सांस्कृतिक मंच,जन नाट्य मंच, हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति, साक्षरता अभियान,  राज्य संसाधन केंद्र हरियाणा (सर्च)और ‘सहमत’ मंच के वे मुख्य आधार स्तंभ थे ।

उनके इस योगदान को देखते हुए ओम सिंह ने उन्हे हरियाणा में ‘नवजागरण का अग्रदूत’ कहा है । उन्होंने हरियाणा में साहित्यिक- संस्कृति को एक आंदोलन का रूप दे दिया था। उनका आलोचना-कर्म हमेशा जनपक्षधर रहा।

इसके बाद उन्होंने ललित कार्तिकेय और ओमप्रकाश वाल्मीकि को याद किया है। ललित कार्तिकेय को ‘सामाजिक विद्रूपताओं का आहत कथाकार’ कहते हुए वे उनकी चर्चित कहानी ‘हीलियम’ का विशेष उल्लेख करते हैं। ललित कार्तिकेय को वे हरियाणा का एक प्रतिभासंपन्न रचनाकार मानते हैं जो बहुत जल्दी हमसे विदा हो गया । इसके बाद वे प्रख्यात दलित-चिंतक और रचनाकार ओमप्रकाश वाल्मीकि को और उनकी आत्मकथा ‘जूठन को बहुत ही भावुकता के साथ याद करते हैंl वे इस संस्मरण में ओमप्रकाश वाल्मीकी के साथ अपने निजी संबंध और उनकी रचनाधर्मिता का विशेष रूप से उल्लेख करते हैं। उनका कहना है — ‘जूठन’ के अध्ययन ने ही मुझे न्याय,समानता और स्वतंत्रता की जरूरत का अहसास कराया है। अन्याय, उत्पीड़न के प्रति आक्रोश तथा अन्यायी और उत्पीड़क के प्रति घृणा के भाव का संचार किया है। वे लिखते हैं–मैं ‘जूठन’ को पढ़ते हुए कई बार रोया हूँ और भावुक होकर एक दिन रोते-रोते मैंने वाल्मीकि जी को एक पोस्टकार्ड लिखा था। पुस्तक के अंत की ओर जाते हुए उन्होंने उभरते हुए आलोचक, कथाकार सरबजीत को याद किया है । इस प्रतिभा सम्पन्न लेखक को कैंसर ने युवा अवस्था में ही हमसे छीन लिया । सरबजीत के साथ ही  प्रेमचन्द की परम्परा के सशक्त  कथाकार तारा पांचाल को याद करते हैं । उनके संपादित कहानी संग्रह ‘बणछटी’ और एकमात्र कहानी संग्रह ‘गिरा हुआ वोट’ तथा उनकी कुछ कहानियों का उल्लेख करते हैं।  अंत में वे कुरुक्षेत्र के आंदोलनधर्मी-अध्यापक/ लेखक रामेश्वर दास गुप्ता और उनकी रागिनी एवं कविताओं को याद करते हैं। उनका सारा जीवन कर्मचारियों के लिए और अंधविश्वास के खिलाफ़ लड़ते हुए बीता। इस पुस्तक का अंतिम संस्मरण कृष्ण कुमार भारतीय को समर्पित है जोकि कलायत के रहने वाले थे। वे अन्ना आंदोलन में अन्ना के साथ जेल जाने वाले हरियाणा के एकमात्र विद्यार्थी थे। उनकी समीक्षाएं,आलेख,कविताएं व अन्य रचनाएं मधुमती, दैनिक भास्कर,दैनिक ट्रिब्यून, हरीभूमि, सृजनगाथा, प्रवासी दुनिया आदि में छपती रहीx । 30/31 वर्ष की छोटी सी उम्र में कृष्ण कुमार एक सड़क दुर्घटना में हमसे बिछुड़ गए।

पुस्तक के अंत में ओमसिंह अशफाक ने अपनी कुछ रचनाओं की चर्चा की है l प्रसिद्ध कविता बोल-बम बोल-बम, बंदा रिक्शा खींच रहा है और दिन बरजन के आन पड़े-इन तीन कविताओं से परिचय कराया है । अपने रचनाकर्म पर टिप्पणी करते हुए लिखा है-रहिमन ये घर प्रेम का अर्थात खाला का घर नहीं है । दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जो घर जारै आपना चले हमारे साथ!.. कुल मिलाकर इस पुस्तक को एक लघु उपन्यास की तरह भी पढ़ा जा सकता है l

भले ही ओम सिंह अशफ़ाक द्वारा वर्णित उपरोक्त सभी रचनाकार अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वे अपने साहित्य के माध्यम से आज भी जीवित हैं । जैसाकि आबिद साहेब ने कहा है- “नगर में सुनना सुनाना जब कभी होगा, हमारा ज़िक्र यक़ीनन गली गली होगा।”

कवि और समीक्षक ओम सिंह अशफ़ाक ने उनके व्यक्तित्व और रचना-कर्म को इस पुस्तक में साकार करने का प्रयास किया है ।आशा है पाठक इस पुस्तक को पढ़कर प्रेरित और अनुप्राणित होंगे। यह पुस्तक उन्हें एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रेरित करेगी ।

लेखक को बहुत-बहुत बधाई!!

 

पुस्तक-मौन आहों में बुझी तलवार

लेखक-ओम सिंह अशफ़ाक

सम्पर्क 7015841314

कीमत–225/- सजिल्द

प्रकाशक– स्वराज प्रकाशन

दरिया गंज,नई दिल्ली-110002

समीक्षक- जयपाल

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *