क्या सेना में अपनाए जाने वाले सोने के तरीके से सचमुच दो मिनट में नींद आ सकती है?

क्या सेना में अपनाए जाने वाले सोने के तरीके से सचमुच दो मिनट में नींद आ सकती है

 डीन जे. मिलर

क्या आपने कभी अपने फोन पर ऐसा वीडियो देखा है, जिसमें सेना की वर्दी पहने कोई व्यक्ति आपको स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह दे रहा हो। कभी-कभी ये वीडियो इतने प्रेरणादायी होते हैं कि आप तुरंत अपनी जगह से उठते हैं और व्यायाम शुरू कर देते हैं। कभी-कभी इनका उद्देश्य आपको शिक्षित करना होता है। ऐसी ही एक सलाह होती है सोने के लिए सेना में अपनाए जाने वाले तरीके को आजमाने की। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस सलाह से आम लोगों को फायदा होता है।

चलिए जानते हैं कि सोने के लिए सेना में अपनाए जाने वाले तरीके को आजमाने से क्या होता है।

सोशल मीडिया पर कई तरह की बातें कही जाती हैं, जिनमें यह दावा भी शामिल है कि इस तरीके को अपनाने से आपको केवल दो मिनट में नींद आ सकती है। यह बात सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है।

मैं नींद और दिनचर्या पर शोध करता हूं। अपने इस काम के दौरान मैंने थकान से निपटने और बेहतर नींद लेने में कई एथलीट और सैन्य कर्मियों की मदद की है।

चलिए जानते हैं कि सेना में इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका सैनिकों के लिए क्यों कारगर हो सकता है। साथ ही बताएंगे कि क्या यह आपके लिए भी कारगर है?

इस तरीके का उद्देश्य वातावरण की परवाह किए बिना सैन्यकर्मियों के शरीर को नींद के लिए तैयार करने में मदद करना है।

इस पद्धति का पहला उल्लेख ‘रिलैक्स एंड विन’ नामक खेल पुस्तक में मिलता है। इससे जुड़ी जानकारियां स्रोत के आधार पर थोड़ी भिन्न हो सकती हैं। लेकिन तीन प्रमुख घटक समान रहते हैं:

— ‘प्रोग्रेसिव मसल रिलेक्सेशन’ (पीएमआर): पीएमआर के जरिये शरीर की विभिन्न मांसपेशियों को सिकोड़कर शिथिल किया जाता है। इसकी शुरुआत चेहरे की मांसपेशियों से की जाती है और फिर कंधों, बाजुओं, छाती व पैरों की मांसपेशियों को आराम दिया जाता है।

— ‘कंट्रोल्ड ब्रीदिंग’: इसमें सांस को धीमा और नियंत्रित किया जाता है और लंबी सांस छोड़ने पर जोर दिया जाता है।

— ‘विजुअलाइजेशन’: इसमें शांत वातावरण की कल्पना की जाती है, जैसे शांत पानी पर तैरने या शांत मैदान में लेटे रहने की।

ये तकनीक जानने के बाद यह सवाल उठता है कि क्या यह केवल एक विज्ञान की बात है या फिर आम लोगों को असल में इसका कोई फायदा भी होता है।

दुनिया भर की सेनाएं नींद से जुड़ी अपनी तकनीकों को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित नहीं कर रही हैं। इसलिए मुख्यधारा के विज्ञान में, सोने के इस तरीके के बारे में विशेष तौर पर कोई पुष्टि नहीं की गई है।

तो, आइए इसकी तुलना अनिद्रा से निपटने के लिए बताए जाने वाले उपचार से करें, जिसे अनिद्रा संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (सीबीटी-आई) के रूप में जाना जाता है। इसमें कई प्रमुख घटक शामिल हैं:

— ‘कॉग्निटिव थेरेपी’: नींद के बारे में गैर-वास्तविक मान्यताओं और चिंताओं को चुनौती देना।

— ‘स्टिम्युलस कंट्रोल’: बिस्तर पर लेटकर ऐसी कोई गतिविधि न करना, जिससे नींद भाग जाए।

— ‘स्लीप रेस्ट्रिक्शन’: नींद जल्दी आए, इसके लिए कम समय बिस्तर पर लेटना। ज्यादा समय बिस्तर पर लेटे रहने से नींद भाग भी सकती है।

— ‘स्लीप हाइजीन’: स्वस्थ दिनचर्या और वातावरण बनाए रखना, जैसे कैफीन और अल्कोहल का सेवन सीमित करना, एक सुसंगत दिनचर्या बनाए रखना, तथा शयन कक्ष को अन्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल न करना।

अब यह जानते हैं कि सेना में अपनाई जाने वाली तकनीक और सीबीटी-आई तकनीक क्या समान हैं?

सेना की तकनीक और सीबीटी-आई के बीच समानताएं स्पष्ट हैं। उदाहरण के लिए, दोनों में नींद से जुड़ी पाबंदियों (स्लीप रेस्ट्रिक्शन) की तकनीक शामिल है, जिसके तहत नींद की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए बिस्तर में बिताए समय को सीमित किया जाता है। सैन्य कर्मियों को मानसिक अनुशासन में प्रशिक्षित किया जाता है, जो सीबीटी-आई में संज्ञानात्मक चिकित्सा (कॉग्निटिव थेरेपी) के माध्यम से नकारात्मक विचारों को दूर रखने की प्रक्रिया के समान है। हालांकि, सेना की तकनीक हर वातावरण में नींद लेने के लिए है, जबकि सीबीटी-आई किसी व्यक्ति की नींद की समस्या को दूर करने के लिए है।

दोनों के बीच माहौल का अंतर है। उदाहरण के लिए सैन्यकर्मियों के पास ‘स्लीप हाइजीन’ का विकल्प नहीं होता।

सेना की तकनीक को जानने के बाद अब यह सवाल उठता है कि क्या इसे आजमाने से दो मिनट में नींद आ सकती है?

इन समानताओं के आधार पर, यह पूरी तरह संभव है कि सेना की तकनीक से हममें से अधिकतर लोगों को जल्दी नींद आने में मदद मिल सकती है। लेकिन क्या सचमुच दो मिनट में सोया जा सकता है?

दुर्भाग्य से, हममें से अधिकतर लोग मुश्किल वातावरण में काम करने वाले कर्मचारी नहीं हैं। यह असंभव है कि हम उन मनोवैज्ञानिक और शारीरिक जरूरतों का अनुभव करें जिनके लिए सेना की पद्धति शुरू की गई थी। इसलिए, लोगों के लिए दो मिनट में सो जाना एक गैर-वास्तविक है।

आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि हमेशा आठ मिनट में सो जाना असामान्य है। हमेशा पांच मिनट में सो जाना दिन में अत्यधिक नींद आने का संकेत हो सकता है।

सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक काम करने वाले और नियमित दिनचर्या का पालन करने वाले लोगों के लिए दस से 20 मिनट में सो जाना सामान्य माना जाता है।

लेकिन अगर आप अलग-अलग पाली में काम करते हैं, नए माता-पिता बने हैं, या आपको नींद संबंधी कोई बीमारी है, तो ये अनुमान आप पर लागू नहीं होते। द कन्वर्सेशन से साभार

लेखक सीक्यू विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया से सम्बद्ध हैं

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