भगत सिंहः छात्रों और युवाओं के महान प्रेरणा स्रोत
डॉ. रामजीलाल
अभिजात्य और प्रतिक्रियावादी वर्ग यह प्रचार करते हैं कि छात्रों को राजनीति में भाग नहीं लेना चाहिए क्योंकि इससे उनका भविष्य बर्बाद हो जाएगा. लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि राजनीति घर से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं को प्रभावित करती है. यदि छात्र और युवा राजनीति में भाग नहीं लेंगे, तो राजनीतिक व्यवस्था अपराधियों, भ्रष्ट लोगों, तस्करों और असामाजिक तत्वों के कब्ज़े में आ जाएगी। दूसरे शब्दों में, यदि युवा जागृत नहीं हुए तो राजनीति बदमाशों की अंतिम शरणस्थली बन जाएगी और अपराधियों का राजनीतिकरण और राजनीति का अपराधीकरण हो जाएगा . एन.एन. वोहरा समिति के अनुसार भारतीय राजनीति में राजनेताओं और अपराधियों का गठबंधन व्यवस्था पर हावी होता जा रहा है. परिणाम स्वरूप आम लोगों, खासकर युवाओं को धर्म, जाति, संप्रदाय, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बाँटने की कोशिश करेंगे।
भगत सिंह ने इस षड्यंत्र को समझने की कोशिश की और अपने लेख “विद्यार्थी और राजनीति” में स्पष्ट लिखा-“यह हम मानते हैं कि विद्यार्थियों का मुख्य काम पढ़ाई करना है, उन्हें अपना पूरा ध्यान उस ओर लगा देना चाहिए। लेकिन क्या देश की परिस्थितियों का ज्ञान और उनके सुधार सोचने की योग्यता पैदा करना उस शिक्षा में शामिल नहीं? यदि नहीं तो हम उस शिक्षा को भी निकम्मी समझते हैं, जो सिर्फ क्लर्की करने के लिए ही हासिलकी जाये. ऐसी शिक्षा की जरूरत ही क्या है? कुछ ज्यादा चालाक आदमी यह कहते हैं- “काका तुम पोलिटिक्स के अनुसार पढ़ो और सोचो जरूर, लेकिन कोई व्यावहारिक हिस्सा न लो। तुम अधिक योग्य होकर देश के लिए फायदेमन्द साबित होगे।”
तर्क द्वारा समर्थित वैज्ञानिक ज्ञान : विकास शक्तिशाली प्रकाश पुंज
शिक्षा का मूल उद्देश्य केवल रटकर परीक्षा उत्तीर्ण करना नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक तर्क और विवेक के माध्यम से सामाजिक विकास में बाधक तत्वों, अर्थात् अंधविश्वास, धार्मिक कट्टरता और संकीर्णता को चुनौती देना है. शैक्षिक प्रशिक्षण केवल नौकरी पाने में सहायक हो सकता है, लेकिन नौकरियाँ भी कहाँ मिलती हैं? इसलिए शिक्षा व्यावहारिक पहलुओं पर आधारित होनी चाहिए. वह इस बात से भली-भांति परिचित थे. भगत सिंह के अनुसार- “इस बात पर सभी सहमत हैं कि भारत को अभी ऐसे देशभक्तों की आवश्यकता है, जो अपना तन-मन-धन देश के लिए समर्पित कर दें और पागलों की तरह अपनी पूरी ज़िंदगी देश की आज़ादी के लिए कुर्बान कर दें. लेकिन क्या ऐसे लोग बुज़ुर्गों में मिल सकते हैं? क्या ऐसे लोग पारिवारिक और सांसारिक उलझनों में उलझे हुए, परिपक्व लोगों में से निकलेंगे? यह तो सिर्फ़ ऐसे युवा ही कर सकते हैं जो किसी उलझन में न फँसे हों. उलझनों में पड़ने से पहले, छात्र या युवा तभी सोच सकते हैं जब उन्होंने कुछ व्यावहारिक ज्ञान हासिल किया हो, न कि सिर्फ़ परीक्षा के लिए गणित और भूगोल रटा हो।”
“नये नेताओं के अलग- अलग विचार” नामक लेख में भगतसिंह ने जवाहरलाल नेहरू के विचारों को उद्धृत करते हुए अपने विचारों का पुष्टिकरण किया है.जवाहरलाल नेहरू ने युवाओं को अपनी समझदारी की परख से सामाजिक, आर्थिक ,धार्मिक व राजनीतिक क्षेत्रों विद्रोह करना चाहिए.जवाहरलाल नेहरू के अनुसार – “प्रत्येक नौजवान को विद्रोह करना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्र में भी. मुझे ऐसे व्यक्ति की कोई आवश्यकता नहीं जो आकर कहे कि फलाँ बात कुरान में लिखी हुई है. कोई बात जो अपनी समझदारी की परख में सही साबित न हो उसे चाहे वेद और कुरान में कितना ही अच्छा क्यों न कहा गया हो, नहीं माननी चाहिए.”
भगत सिंह : एक पुस्तक कीट
उनका मानना था कि तर्क द्वारा समर्थित वैज्ञानिक ज्ञान एक ऐसा विकास का शक्तिशाली प्रकाश पुंज है जो लोगों, देशों और समाजों में बड़े बदलाव ला सकता है. जे. एन. सान्याल के अनुसार, जो भगत सिंह के साथ जेल में थे, वे एक बहुत ज्ञानी व्यक्ति थे जो मुख्य रूप से समाजवाद पर ध्यान केंद्रित करते थे. अपने जीवनकाल में, भगत सिंह ने लगभग 735 पुस्तकें पढ़ीं. उनके विचार उनकी जेल डायरी, शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की जेल डायरी (2011) में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं. भूपेंद्र हुजा ने एक पुराने संस्करण, ए मार्टर्स नोटबुक (जयपुर 1994) का संपादन किया था, जो भी भगत सिंह के जेल समय के बारे में है. इस डायरी में 108 विभिन्न लेखकों और 43 पुस्तकों के अंश शामिल हैं, जिनमें से अधिकांश मार्क्स, एंगेल्स और लेनिन के साथ-साथ कई अन्य लेखकों द्वारा लिखी गई थीं.
भारत नौजवान सभा की स्थापना: लाहौर -1926
किसी भी विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए एक संगठन की आवश्यकता होती है. इसीलिए भगत सिंह, सुखदेव, भगवती चरण वोहरा, यशपाल आदि ने मिलकर 1926 में लाहौर में भारत नौजवान सभा की स्थापना की. इसका मुख्य उद्देश्य किसानों और मजदूरों के युवाओं को संगठित करना और उन्हें साम्राज्यवादी, ब्रिटिश और भारतीय पूँजीवादी व सामंती शोषण के विरुद्ध क्रांति करके स्वराज प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना था. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का यह संगठन सार्वजनिक चेहरा था. क्रांतिकारी आंदोलन किसानों और मजदूरों के शोषण के विरुद्ध था. किसानों और मजदूरों के युवाओं को विचारधारा से प्रेरित करने के लिए अप्रैल 1928 में लाहौर में एक घोषणापत्र तैयार किया गया. इस घोषणापत्र में रूस और चीन के बलिदानी क्रांतिकारियों तथा पोलैंड के युवाओं का वर्णन है. इस में गुरु गोविंद सिंह, शिवाजी, हीरा सिंह जैसे वीर योद्धाओं के साथ-साथ जलियांवाला बाग हत्याकांड (13अप्रैल 1919 ) का भी ज़िक्र है. इतना ही नहीं, इसमें दोस्तोयेव्स्की, दादाभाई नौरोजी, आरसी दत्त जैसे विद्वानों का का उल्लेख भी किया गया है.
घोषणापत्र का मुख्य उद्देश्य: युवाओं में चेतना की चिंगारी भरना
6 अप्रैल, 1928 को भारत नौजवान सभा के प्रचार मंत्री भगवती चरण वोहरा द्वारा हस्ताक्षरित इस घोषणापत्र का मुख्य उद्देश्य धार्मिक अंधविश्वास, कट्टरता, संप्रदायवाद, संकीर्णता, ब्रिटिश और भारतीय पूंजीवाद, ब्रिटिश साम्राज्यवाद, शोषण और असमानता का विरोध करना था. साथ ही, युवाओं को प्रेरित करते हुए, तर्क, गंभीरता, शांति और धैर्य के साथ आत्म-त्याग, बलिदान और स्वतंत्र चिंतन पर बल दिया गया.युवाओं और छात्रों को बिना विचारधारा और उद्देश्य के राजनीति में धकेलना उचित नहीं है. क्योंकि किसी भी प्रकार की हिंसा को बढ़ावा देना युवा राजनीति और समाज के लिए हितकर नहीं है. यही कारण है कि भगत सिंह और उनके साथी बम और पिस्तौल के बजाय विचारों के माध्यम से क्रांति को मज़बूती देने के पक्षधर थे. युवाओं को वर्तमान समय के हिंसक उग्रवादियों, आतंकवादियों, माओवादियों और संप्रदायवादियों के हिंसक आंदोलनों से दूर रहना चाहिए क्योंकि जनता के समर्थन के बिना वैकल्पिक व्यवस्था का निर्माण असंभव है.
सेवा, त्याग, बलिदान: अनुकरणीय वाक्य
छात्रों और युवाओं को वैज्ञानिक और व्यावहारिक ज्ञान के आधार पर अपना मार्गदर्शन करना चाहिए. उन्हें उपद्रवियों के हाथों का हथियार नहीं बनना चाहिए. आंदोलन तभी सफल होता है जब वह अहिंसक, लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण हो, क्योंकि दुनिया के सभी लोकतंत्रों में बदलाव का मुख्य साधन चुनावों में वोट का उचित उपयोग होता है. लेकिन जब चुनी हुई सरकारें निरंकुश हो जाती हैं और जनता के बजाय मुट्ठी भर अमीर लोगों के हितों में रुचि रखने लगती हैं, तो आंदोलन करना मजबूरी बन जाता है. घोषणापत्र के अनुसार युवाओं और छात्रों को ‘संजीदगी और ईमानदारी’ के साथ ‘’सेवा, त्याग, बलिदान’’ को अनुकरणीय वाक्य के रूप में अपना मार्गदर्शक बनाना चाहिए.घोषणापत्र का अनुकरणीय वाक्य है: ‘’राष्ट्रनिर्माण के लिए हजारों अज्ञात स्त्री-पुरुषों के बलिदान की आवश्यकता होती है जो अपने आराम व हितों के मुकाबले, तथा अपने एवं अपने प्रियजनों के प्राणों के मुकाबले देश की अधिक चिन्ता करते हैं.’’
संक्षेप में,युवाओं और छात्रों को वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर सामाजिक असमानता, आर्थिक शोषण, निरंतर बढ़ते पूंजीवाद, नव-साम्राज्यवाद, बढ़ती वैमनस्यता, बेरोजगारी, धार्मिक सांप्रदायिकता और संकीर्णतावाद का विरोध करना चाहिए, ताकि एक ऐसी व्यवस्था स्थापित हो सके, जहाँ राष्ट्रीय संसाधनों और सत्ता पर किसानों और मजदूरों का नियंत्रण हो. भगत सिंह की यही वैज्ञानिक सोच छात्रों और युवाओं के लिए प्रकाश की किरण है और उन्हें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने का प्रेरणास्रोत है. हम भगत सिंह को भारत रत्न से सम्मानित करने की वकालत करते हैं.
लेखक दयाल सिंह कॉलेज ,करनाल हरियाणा के पूर्व प्राचार्य और सामाजिक वैज्ञानिक हैं
डॉ रामजी लाल