हरियाणा के जूझते जुझारू लोग – 4
शिक्षक नेता चरण सिंह संधूः जिससे बंसीलाल भी बात करने से बचते थे
सत्यपाल सिवाच
स्वर्गीय चरण सिंह संधू हरियाणा अध्यापक आंदोलन की उन विभूतियों में से हैं जिन्हें याद किए बिना हमारा इतिहास अधूरा रहता है। उनका जन्म 10 अक्तूबर 1927 को करनाल जिले के गगसीणा गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। बी.ए.बी.टी. करने के बाद वे 18 अगस्त 1952 को एस.ए.वी. अध्यापक नियुक्त हुए।
वे प्रारम्भ में ही लोकल बॉडीज टीचर्ज यूनियन में सक्रिय भूमिका निभाने में लगे थे। उन्होंने सन् 1953 की हड़ताल और 1957 के संघर्ष में भी भाग लिया था, जिसके परिणामस्वरूप लोकल बॉडीज के अध्यापक सरकारी सेवा में आ सके। वह पंजाब से हरियाणा अलग राज्य बनने तक जिला प्रधान/सचिव के रूप में काम कर चुके थे। मई 1967 में जाट हाई स्कूल जीन्द में हुए सम्मेलन उन्हें हरियाणा गवर्नमेंट टीचर्ज यूनियन का अध्यक्ष और बृजमोहन शर्मा को महासचिव चुना गया। उस समय तक कॉलेज शिक्षकों के वेतनमान संशोधित किए जा चुके थे। कोठारी शिक्षा आयोग की सिफारिशों को लागू किए जाने में विलंब से शिक्षकों में बेचैनी बनी हुई थी। इसी इच्छा से समस्त श्रेणियों के शिक्षकों को एकजुट करने की इच्छा से फेडरेशन के सहयोग से एक सितम्बर 1967 को रोड़ भवन करनाल में बैठक बुलाई गई। सभी संगठनों द्वारा अनुमोदन किए जाने के बाद 8 अक्तूबर 1967 को अन्य संगठनों के साथ तालमेल कर अध्यापक संयुक्त दल बनाया गया और चरणसिंह संधू को इसका अध्यक्ष और लेक्चरर एसोसिएशन के सोमप्रकाश को महासचिव बनाया गया।
इस बैठक में तय किया गया कि कोठारी शिक्षा आयोग की सिफारिशें पंजाब की पद्धति पर रनिंग पे ग्रेड के रूप में लागू हों; अध्यापकों पर लागू किया गया प्रोफेशनल टैक्स समाप्त किया जाए ; प्रोविंसलाज्ड कॉडर के सभी शिक्षकों को पेंशन दी जाए और शिक्षकों के बच्चों को कॉलेज स्तर तक नि:शुल्क शिक्षा दी जाए। इसके लिए आन्दोलन की योजना बनाकर अभियान शुरू कर दिया गया। चरणसिंह संधू में सबको साथ लेकर चलने की अद्भुत सामर्थ्य थी। जिला स्तर पर भूख हड़ताल व प्रदर्शन के बाद 15-16 नवम्बर 1967 को “काम छोड़ हड़ताल” की गई। इसके बाद 19 नवंबर 1967 को रोहतक में जबरदस्त रैली की गई। रोहतक के एक नेता ने बिना परामर्श किए रैली में दो सांसदों – चौधरी रणवीर सिंह और दिल्ली से जनसंघ के एम.एल.सौंधी को बुला लिया था। चरण सिंह संधू ने कहा कि रैली में राजनीतिक दलों के नेताओं का सम्बोधन नहीं होना चाहिए। निमंत्रण करने की गलती मानते हुए दोनों नेताओं को यह बता दिया गया। चौधरी रणवीर सिंह तो विनम्रता से चले गए लेकिन सौंधी ने माइक पकड़कर हंगामा किया।
रैली के आह्वान पर दो शिक्षकों ने अगले ही दिन से आमरण अनशन शुरू कर दिया। इसके बाद 21 नवंबर 1967 को सांकेतिक हड़ताल रख दी। उसी दिन राव वीरेन्द्र सिंह की संविद सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। हड़ताल सफल रही। अगले दिन गवर्नर ने बातचीत भी की, जिसके आधार पर एक महीने के लिए आन्दोलन स्थगित कर दिया गया। कोठारी कमीशन तो लागू हो गया लेकिन पंजाब पद्धति के अनुसार नहीं हुआ। बहुत प्रयास करने के बावजूद अध्यापक संयुक्त दल को बनाए नहीं रखा जा सका। उनके नेतृत्व में अध्यापकों ने फेडरेशन के आह्वान पर 10 जनवरी और 8-9 फरवरी 1968 की हड़ताल में भी भाग लिया। 30 अगस्त 1969 को हुए सम्मेलन में संगठन को पुनर्गठित करते हुए उसका नाम हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ रखा गया। सोहनलाल को अध्यक्ष व रामदत्त शर्मा महासचिव बनाए गए तो चरणसिंह संधू को सलाहकार बनाया गया।
सन् 1973 की हड़ताल के दौरान संधू सर्वमान्य शीर्ष नेता बन चुके थे। इस दौरान दो बार निलंबित किए गए। कई दिन दिल्ली की तिहाड़ जेल में रहे। उनकी छवि मजबूत एवं साहसी नेता की थी। ऐसा माना जाता है कि मुख्यमंत्री बंसी लाल भी उनसे बात करने में कतराते थे। दिल का दौरा पड़ने की वजह से 21 जनवरी 1982 को उनका देहांत हो गया। उस समय उनकी आयु 54 वर्ष 3 महीने ही थी । वे अंतिम समय तक अध्यापक आंदोलन से जुड़े रहे और उस समय भी राज्य कार्यकारिणी के सदस्य थे।
स्वर्गीय चरण सिंह संधू का बड़ा बेटा बलकार सिंह मुख्याध्यापक पद से रिटायर हो चुका है। दीप सिंह जिला मौलिक शिक्षा अधिकारी कार्यालय, करनाल में लिपिक है। बेटी बिमला गृहिणी है। पत्नी श्रीमती अंगूरी देवी के सहयोग से ही चरण सिंह संधू अध्यापकों व समाज की सेवा को ज्यादा समय दे सके। (सौजन्य-ओम सिंह अशफ़ाक)
लेखक- सत्यपाल सिवाच