सिक्का और दो राहें

लघु कथा

सिक्का और दो राहें

एस पी भाटिया

 

एक छोटे से गाँव में, जहाँ मिट्टी की खुशबू और खेतों की हरियाली हर कदम पर बसी थी, वहीं एक वृद्ध बुज़ुर्ग रहता था—नाम था गोविंद। गोविंद अपने गाँव में सिक्के का ज्ञानी माना जाता था। लोग हर छोटी-बड़ी बात में उससे सलाह लेने आते और वह मुस्कुराकर कहता:

“बेटा, जीवन में हर निर्णय के दो पहलू होते हैं। और याद रखो, सिक्का उछालकर सिर्फ संकेत मिलता है, निर्णय तुम्हारे मन और कर्म में होता है।”

गाँव के बच्चे खेलते-खेलते अक्सर सिक्का उछालते और जीत या हार तय करते। एक दिन, रामू नाम का लड़का अपनी बहन की शादी के लिए दहेज की समस्या लेकर गोविंद के पास आया। वह बोला,

“दादा, मैं नहीं जानता क्या करना चाहिए, मैं केवल सिक्का उछालकर फैसला करूँ।”

गोविंद ने सिक्का रामू के हाथ में रखा। उसने कहा,

”देखो बेटा, यह सिक्का दो तरफ़ा है—एक तरफ़ सफलता, दूसरी तरफ़ असफलता। उछालो, पर ध्यान रखो—जो पक्ष भी ऊपर आए, असली मूल्य तुम्हारे कर्म और सोच में है।

रामू ने सिक्का उछाला। वह हवा में घूमता, चमकता, और फिर गिरा। सिक्के ने सफलता की तरफ इशारा किया। रामू खुशी से फूला नहीं समा रहा था।

गोविंद ने हंसकर कहा,

“बेटा, यही तो खेल और जीवन का फर्क है। सिक्का संकेत देता है, लेकिन असली मेहनत, समझ और जिम्मेदारी तुम्हारे हाथ में है। यदि तुम केवल सिक्के के भरोसे रहोगे, तो जीवन की गहरी सीखों से चूक जाओगे।”

रामू समझ गया। उसने न केवल तैयारी शुरू की, बल्कि अपने घरवालों को भी समझाया। विवाह सफल रहा, लेकिन रामू ने यह सिखा कि सिक्का निर्णय का प्रतीक है, पर जीवन में मूल्य सोच और कर्म में छुपा है।

गाँव में यह कहानी अब भी बच्चों और बड़ों को सुनाई जाती है। खेल, नीति, अवसर—सबके लिए सिक्का उछालते हैं लोग, पर असली बुद्धि और सफलता मन, कर्म और समझ में निहित है।

सीख:

सिक्का केवल संकेत देता है।

जीवन का असली निर्णय कर्म, सोच और जिम्मेदारी से होता है।

खेल में हार-जीत, नीति में अवसर—सभी में सोच और तैयारी का महत्व है।

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