वे लोहार जो हथियार बनाते थे 

विश्वकर्मा पूजा के उपलक्ष्य में प्रस्तुत :

कवि का कथन : विदेशी आक्रमणकरियों या आक्रांताओं से देश की रक्षा में सभी जातियों, समुदायों और धर्मों का योगदान सामान रूप से रहा. किसी एक समुदाय को महिमामंडित करना और राष्ट्रीय महापुरुषों को जातियों एवं धर्मों में बाँटना बिलकुल गलत और घातक है. मेरी कविता एक ऐसे समुदाय के योगदान को लेकर है जिसकी देशभक्ति और महान ऐतिहासिक एवं सामाजिक योगदान को बिलकुल भुला दिया जाता है.:

कविता

वे लोहार जो हथियार बनाते थे

-कृष्ण ठाकुर-

 

वे लोहार जो हथियार बनाते थे

जिनके बनाए हथियार से राजाओं ने

बड़ी-बड़ी लड़ाइयां जीतीं

दुश्मनों के दांत खट्टे किए

जिनके बनाए तलवार, भाले, कटार

दुश्मनों पर काल बन कर टूटते थे

जिनके बनाए सुरक्षा कवच को

पहन कर सैनिक सुरक्षित महसूस करते थे

दुगुने उत्साह के साथ अपनी मातृभूमि

की रक्षा के लिए लड़ते थे

उन लोहारों को शूद्र मान लिया गया

उनको निचली जाति का मान लिया गया

जाति-व्यवस्था में सबसे नीचे रखा गया !

 

वे लोहार जिन्होंने राजाओं के महलों को

अपनी कला से खूबसूरत बनाया

लोहे के सामान लगा कर उसे सदियों

तक खड़ा रहने लायक बनाया

जिन्होंने अपनी कला से उनके चौखट

दरवाजे की खूबसूरती में चार चाँद लगाया

जिन्होंने लोहे के अभेद्य गेट लगा कर

उनके किले को दुश्मनों से सुरक्षित किया

जिनके बनाए गए नाल पहन कर घोड़े

दुश्मनों के बीच से हवा को चीरते हुए

सुरक्षित बाहर निकल आते थे

उनको निचली जाति का मान लिया गया

जाति-व्यवस्था में सबसे नीचे रखा गया !

 

वे लोहार जो कृषि के औजार बनाते थे

जिनके बनाए हल, खुरपी, हंसुआ, हेंगा,

कुदाल आदि से किसान खेती करते थे

जिनके बनाए गड़सा, चाराकल आदि से

किसान पशुओं के लिए चारा काटते थे

जो उप नयन संस्कार के लिए पीढ़ा, खड़ाऊ,

स्लेट आदि बनाते थे

जो जनता की जरूरत के लिए लोहे

और लकड़ी के हर सामान बनाते थे

जिनकी कला और मेहनत सृष्टि के

हर निर्माण में जीवंत और अमर है

उनको निचली जाति का मान लिया गया

जाति-व्यवस्था में सबसे नीचे रखा गया !

 

कवि कृष्ण ठाकुर एक सेवानिवृत बैंकर हैं।