लोकतंत्र का नया पहरेदार

बेबाक बोल

 लोकतंत्र का नया पहरेदार

एस.पी. भाटिया

भारतीय राजनीति का यह नया अध्याय, उपराष्ट्रपति पद पर हुए हालिया चयन के रूप में, केवल एक संवैधानिक प्रक्रिया भर नहीं है—यह सत्ता की धड़कन और लोकतंत्र की नब्ज़ को परखने का अवसर है। सत्ता ने अपने कौशल का पूरा उपयोग किया है ताकि ऊपरी सदन का नेतृत्व उसी हाथों में रहे जो उसकी इच्छाओं का अनुकरण कर सके। यह चुनाव केवल मतों का खेल नहीं था, यह शक्ति प्रदर्शन था, यह एक संदेश था कि सत्ता का डंडा अभी भी उतनी ही मजबूती से थामे रखा गया है।

नए उपराष्ट्रपति, जिनकी सादगी की चर्चा ज़रूर की जाएगी, दरअसल एक लंबे वैचारिक अनुशासन की परिपाटी से आए हैं। उनके व्यक्तित्व में स्वयंसेवक की अनुशासनप्रियता और व्यापारी की व्यवहारिक दृष्टि दोनों घुली-मिली हैं। यही मिश्रण उन्हें रोचक भी बनाता है और चुनौतीपूर्ण भी। अब सवाल यह नहीं कि वे राज्यसभा को कैसे चलाएंगे, सवाल यह है कि वे उसे किस दिशा में ले जाएंगे—मजबूत बनाकर या मजबूर बनाकर।

लोकतंत्र की सुंदरता उसकी बहसों में है, मतभेदों में है, टकरावों में है। यदि ऊपरी सदन भी केवल ध्वनिमत का एक मंच बनकर रह जाए, तो लोकतंत्र का एक बड़ा स्तंभ खोखला हो जाएगा। यह चुनाव एक चेतावनी की तरह है कि सत्ता केवल जीतना नहीं चाहती, वह विरोध को मौन कराना भी चाहती है।

विपक्ष के लिए यह समय आत्ममंथन का है। उन्हें यह तय करना होगा कि वे केवल सांकेतिक विरोध तक सीमित रहेंगे या संविधान की रक्षा के लिए संगठित होकर आगे बढ़ेंगे। सदन में गंभीर, तर्कशील और निडर आवाज़ों का होना इसलिए आवश्यक है कि वे इस नए पहरेदार के निर्णयों को परख सकें, रोक सकें और ज़रूरत पड़ने पर चुनौती भी दे सकें।

नए उपराष्ट्रपति को भी यह स्मरण रखना होगा कि वे केवल सत्ता के प्रतिनिधि नहीं, संविधान के प्रहरी हैं। उनका हर निर्णय इतिहास में दर्ज होगा—क्या उन्होंने संसद को और लोकतंत्र को ऊंचा उठाया या केवल सत्ता की गूंज को और तेज़ कर दिया।

हमारी प्रार्थना यही है कि वे अपने भीतर के वैचारिक आग्रह से ऊपर उठकर लोकतंत्र की आत्मा को जीएं। उन्हें शक्ति, विवेक और साहस की आवश्यकता है, क्योंकि यह पद केवल सम्मान का नहीं, बल्कि परीक्षा का है। यदि वे संविधान की मर्यादा को अक्षुण्ण रख पाए, तो यह लोकतंत्र की विजय होगी, अन्यथा यह पराजय एक ऐसे मौन में बदल जाएगी, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए सबसे बड़ा सबक होगा।

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