जयपाल की कविता – भगवान से एक मुलाकात 

भगवान से एक मुलाकात

      जयपाल

*एक दिन* कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन पर

मुझे भगवान जी मिल गए

बड़ी बुरी हालत में थे

पैसेंजर गाड़ी से उतरे थे शायद

सो पहचानने में बड़ी दिक्कत आई

भगवान जी ने खुद ही कहा

अरे भाई देखते क्या हो, भगवान हूँ भगवान

मैं दंग रह गया सर्वशक्तिमान परमात्मा को देखकर

खैर मन ने कहा-संदेह मत करो

न जाने किस रूप में नारायण मिल जाएं

मैंने भगवान जी से कहा-

बोलो क्या सेवा करूँ भगवान जी

भगवान जी कुछ रूखे से होकर बोले

यहाँ कोई घड़ा नहीं है, पानी पीना था

मैंने उन्हें वाटर कूलर दिखाया

भगवान जी ने पानी पिया, हाथ मुँह धोया

और मेरे पास आकर बेंच पर बैठ गए

थोड़ा सोचकर बोले-

यहाँ कुरुक्षेत्र में प्लॉट मिल जाएगा कहीं

मैंने कहा-प्लॉट कहाँ मिलता है आजकल

मिलेगा भी तो शहर से बाहर ही मिलेगा

शहर में तो चारों तरफ तेरे चेलों का कब्ज़ा है

वैसे कुरुक्षेत्र में तुम्हारे लिए अब जगह बची भी कहाँ है

वैसे भगवान जी, एक बात तो बताओ

तुम्हें प्लॉट कि क्या ज़रूरत आन पड़ी

तुम तो सर्वव्यापक हो, सर्वशक्तिमान हो,

जहाँ चाहो वहाँ पसर जाओ

भगवान जी अड़ गए

बोले-नहीं थोड़ी सी जगह तो चाहिए ही

बहुत भटक लिया

बहुत ख़ाक छान ली

अब थोड़ा आराम करना चाहता हूं

कहीं एक जगह बसना चाहता हूं

मैंने भगवान जी को याद दिलाया-

तुम्हारा एक प्लॉट तो आजकल खाली पड़ा है

बोले-कहां

मैंने कहा-अयोध्या में

भगवान जी कुछ मायूस हो गए

बोले–नहीं भाई, ऐसे प्लॉट से क्या फायदा

जहां रात दिन पत्थर बरसते रहे

वहाँ मेरे ऐसे दीवाने हैं

न खुद चैन से रहते हैं

न किसी को रहने देते हैं

सारे देश में घमासान मचा रखा है

उनसे छिप-छिप कर तो यहां आया हूं

अब धूप, गर्मी, सर्दी, बारिश सब कुछ है

कहां जाऊं, क्या करूं…

मैंने देखा भगवान जी बहुत परेशान हैं

मैंने अगला सुझाव दिया

चलो पंजाब चलते हैं

वहाँ किसी गुरुद्वारे में जगह मिल जायेगी, लंगर फ्री है

-अरे भाई लंगर तो फ्री है

पर फ्री में और भी बहुत कुछ खाना पड़ेगा

तुम तो जानते हो आजकल आतंकवाद का दौर है

गुरुद्वारे खुद सुरक्षित नहीं हैं

इधर आतंकवादी-उधर पुलिस

आगे कुआं -पीछे खाई

मैंने कहा-ऐसा करते हैं

कोई अच्छी सी मस्जिद देखते हैं

तुम्हें क्या अड़चन है

तुम तो ईश्वर भी हो, अल्लाह भी और वाहेगुरु भी

वो तो सब ठीक है-भगवान जी बोले

पर अयोध्या में मस्जिद में ही तो था

मस्जिद भी थी और मंदिर भी था

तुम जानते ही हो क्या हुआ

सो मंदिर-मस्जिद से तो दूर ही ठीक !

मैंने कहा-ऐसी बात है तो कोई चर्च देखते हैं

चर्च अनुपम होती है और सुरक्षित भी

भगवान जी बीच में ही बोल पड़े-

चर्च अनुपम तो ज़रूर होगी पर सुरक्षित नहीं है

मैंने कहा वहाँ तेरा ही बेटा रहता है

जीसस क्राइस्ट – सन ऑफ़ गॉड

भगवान जी बोले तुम जानते ही हो उसका क्या हुआ !

सूली पर लटका दिया गया

और कीलें ठोंक दी

जवान बेटे को नहीं छोड़ा

बूढ़े बाप को क्या छोड़ेंगे!

मैंने कहा अपने देश की चर्च के बारे में क्या ख्याल है

भगवान जी तुरंत बोले-

जो ग्रैहम स्टेंस और उसके बच्चों के साथ हुआ

वही मेरे साथ होगा

कहीं मुझ पर नज़र पड़ गई

गोली मार देंगे

या जेल में सड़ाएंगे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में

भगवान जी काफी उदास थे

उदासी में भगवान जी ने दो टूक फैसला सुना दिया

अब मैं किसी धर्मस्थल में नहीं रहूँगा

ये धर्मस्थान हैं

इनके बारे में जितना मैं जानता हूँ उतना तुम नहीं

सदियों से नाता है मेरा

आखिर ये सब तथाकथित धर्मस्थान मेरे ही नाम पर तो बने हैं

और तुम यह भी अच्छी तरह जानते हो

इन्होंने मुझे ही बाहर किया हुआ है

देखो मैं कहां-कहां भटक रहा हूं

भगवान जी के नाज़-नखरों से अब तक मैं तंग आ चुका था

मैंने थोड़ा गुस्से में कहा-

भगवान जी यह पूरा संसार पड़ा है

तुम संसार के स्वामी हो, सर्वशक्तिमान हो

जहां ठीक लगे, वहां रह लो

भगवान जी को मेरी बात कुछ चुभ गई

बोले-मैं किस बात का सर्वशक्तिमान!

मैंने कहा –

कहीं तूफ़ान ला देते हो, कहीं भूचाल

कहीं प्रलय मचा देते हो, कहीं अकाल

भगवान जी तिड़के

यह तुम्हें किसने कहा कि यह सब मैं करता हूँ

मैंने कहा जब तेरी आज्ञा के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता

तो यह सब कौन करता है

भगवान जी बोले यह सब कुछ तो प्राकर्तिक घटनाएँ हैं

बाकी जो आदमी के करने का है वह सब आदमी करता है

खुद ही पत्ते बनाता है

खुद ही हिलाता है

मैंने कहा वाह भगवान जी, जो बुरा-बुरा वो आदमी के सिर

जो अच्छा-अच्छा वो भगवान जी के नाम

भगवान जी बोले – नहीं दोस्त, ऐसी बात नहीं

ना मैं अच्छा करता हूँ ना बुरा

दरअसल मैं तो खुद नहीं जानता

यह सब कैसे होता है और क्योंकर होता है

अब आदमी कुछ भी कहता फिरे, कुछ भी करता फिरे

इसकी सारी जिम्मेदारी मेरी थोड़े ही है

आज तक कोई गुरु-संत-महात्मा आदि मुझसे नहीं मिला

सबके सब खुद ही भगवान बन जाते हैं

खुद ही अवतार बन जाते हैं

रही बात इन धर्मग्रंथों की

ये सब आदमी ने खुद बनाये हैं

उनके ऊपर जो स्टैम्प लगी है

वह भी मेरी नहीं है

जो हस्ताक्षर किये गए हैं

पूरी तरह जाली हैं

ध्यान से देखोगे तो

पूरा एक जाली धर्म-ग्रंथ स्कैंडल सामने आएगा

जो मेरे नाम पर चलता है

यह एक अंतरराष्ट्रीय गैंग है

जिसका नेटवर्क पूरी दुनिया में है

अच्छा भगवान जी, रात हो गई है

चलो घर चलते हैं

यहां पास ही मेरा घर है

मैं भी किराये पर रहता हूँ

प्लॉट मेरे पास भी नहीं है

भगवान जी एकदम तैयार हो गए

बोले – चलो, मुझे भी बड़ी भूख लगी है

मैं भगवान जी को घर ले गया

पत्नी को बताया, भगवान जी आये हैं

पत्नी बोली – तुम तो भगवान के बारे में पता नहीं क्या-क्या बोलते थे

मैंने कहा – क्या-क्या बोलने की बात बाद में

घर में आया तो मेहमान भी भगवान होता है

फिर ये तो खुद साक्षात भगवान हैं

पत्नी के चेहरे पर आज सालों बाद ख़ुशी देखी

पत्नी मेरे पास आयी और धीरे से बोली –

लगता है अब हमारे दिन भी फिर जाएंगे

पत्नी ने परमपिता परमेश्वर के हिसाब से

सात्विक और पवित्र भाव से खाना तैयार किया

और बड़े ही भक्तिभाव से परोसा

भगवान जी तृप्त होकर बोले –

सदियों बाद घर की रोटी मिली आज

अभी तक तो चुटकी भर प्रसाद ही खाता रहा

सोते समय भगवान जी को एक गिलास दूध दिया

बरामदे में फोल्डिंग बिछा दिया

टेबल फैन लगा दिया

लेटते ही भगवान जी सो गए

थोड़ी देर बाद देखा

भगवान जी गहरी नींद में थे

कोई हिलडुल नहीं, कोई हलचल नहीं

इसी बीच मेरा हाथ पत्नी को ज़रा छू गया

पत्नी दूर हट गई

बोली – जानते नहीं बाहर भगवान जी पड़े हैं

त्रिकालदर्शी हैं, सर्वज्ञ हैं

उनसे कुछ छिप नहीं सकता

उधर भगवान जी में थोड़ी से हरकत हुई

भगवान जी ने करवट ली

और दूसरी तरफ मुँह करके सो गए

मैं भगवान जी के बारे में देर रात तक सोचता रहा

क्या हालत हो गई है भगवान जी की

मुझे बारह बजे के आसपास नींद आई

हम सवेरे लगभग आठ बजे उठे

नहा धोकर तैयार हुए

भगवान जी कहीं जाकर दस बजे उठे

उठते ही बोले –

बड़ी कमाल की नींद आई दोस्त

नहा-धोकर भगवान जी तैयार होकर बैठ गए

बोले – नाश्ता

मैंने कहा – तैयार है

गरमागरम पराँठे, दही, आचार, चटनी

चाय वगैरह सब चट कर गए भगवान जी

अच्छी तरह खा-पीकर बोले –

यार, इस भगवानी में कुछ नहीं रखा

ऐसा कर तू मेरे लिए कोई छोटा मोटा काम देख

अब तो मैं कुछ काम करना चाहता हूँ

अपने बीवी-बच्चे होंगे

छोटा सा परिवार होगा

सगे-सम्बन्धी होंगे, दोस्त-मित्र होंगे

आस-पड़ोस होगा

कम से कम मेरी कोई पहचान तो होगी

सदियों की काल्पनिक पहचान से तो मुक्ति मिलेगी

अरबों-खरबों साल की मेरी उम्र हो गई

ना मैं जी सका, न मर सका

अनादि-अनंत ही बना रहा

दरअसल जब मुझे पैदा होने से ही रोक दिया गया

तो मैं मरता भी कैसे

लेकिन अब मैं जीना चाहता हूँ

और जीने के बाद मरना भी चाहता हूँ

अब मैं आसमान में नहीं धरती पर बसना चाहता हूँ

अब मैं देवताओं के बीच नहीं आदमियों के बीच बसना चाहता हूँ

सदियों की पाखंडपूर्ण पहचान का प्रायश्चित करना चाहता हूँ

बात करते करते हम इतने मग्न हो गए

कि पता ही नही चला कि किस शहर में आ गए

भगवान जी की बातें थीं ही बड़ी अजीब

भगवान जी इतने दुखी होंगे अपने दीवानों से

यह तो मैंने सपने में भी नहीं सोचा था

इसी बीच एक उत्पाती भीड़ हमारी तरफ आ गई

हाथों में ईंट ,पत्थर, तलवार ,त्रिशूल,

भाले, खंजर, तमंचे,हथगोले

आग ही आग ख़ून ही ख़ून

चीख-पुकार , कत्ल-बलात्कार

भगवान जी के नाम पर हिंसक नारे

भगवान जी बोले -भागो …भागो …. भागो

आ गए मेरे दीवाने…भागो…भागो……भागो

हम दोनों सिर पर पैर रखकर भागे

मैं तो किसी तरह बच बचा कर

एक पुलिया के नीचे जा छिपा

बाहर झांक कर देखा तो…

भगवान जी बेचारे दंगाइयों के बीच जा फंसे थे

लगे उनको समझाने ,बहस करने

आखिर सर्वशक्तिमान भगवान थे

अपना परिचय दिया, बोले….

…जिसके नाम पर तुम ख़ून-खराबा कर रहे हो

वह तो तूम्हारे सामने खड़ा है

क्या तुम मुझे नहीं पहचानते..!

राम,रहीम, वाहेगुरु, जीसस आदि कईं नाम हैं मेरे

‘विधर्मी लगता है..या कोई पागल…एक बोला

मारो साले पागल को…. दूसरा चिल्लाया

देश का गद्दार है…मारो…. तीसरा चिल्लाया

चारों तरफ भाले, बर्छे, खंजर, हथगोले

अपने ही दीवानों के बीच घिर चुके थे भगवान जी

अब क्या करें कहां जाएं…….

इसी बीच भाले, बर्छे,त्रिशूल चलने लगे

भगवान जी लहुलुहान होकर गिर पड़े

दंगाईयों ने उन्हें आग के हवाले कर दिया

इसके बाद सारे दीवाने खुशी में झूम उठे !

(… मुलाकात खत्म…)

 

3 thoughts on “जयपाल की कविता – भगवान से एक मुलाकात 

  1. विश्लेषणात्मक समीक्षा : “भगवान से एक मुलाकात” – जयपाल

    जयपाल की यह रचना साधारण कथ्य में बसी हुई प्रतीत होती है, परंतु गहन रूप से देखें तो यह समकालीन धार्मिक-सामाजिक विमर्श, सत्ता और मानवता पर एक प्रबुद्ध चिंतन है। कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन जैसी आम जगह से शुरुआत करना कवि का प्रतीकात्मक उपकरण है—यह दर्शाता है कि दिव्य और सांसारिक का मिलन कहीं भी संभव है, और भगवान भी किसी सामान्य इंसान की तरह भटक सकते हैं, असुरक्षित महसूस कर सकते हैं।

    कवि ने भगवान को “बड़ी बुरी हालत में” उतारा है। यह रूपक धार्मिक प्रतीकों के पाखंड और आज के समाज में धार्मिक स्थानों की असुरक्षा पर कटाक्ष है। भगवान का वाटर कूलर से पानी पीना, हाथ-मुँह धोना, और बैठ जाना, एकदम मानवीय तरीके से प्रस्तुत किया गया है—यह दर्शाता है कि ईश्वर भी वर्तमान सामाजिक-सांस्कृतिक संकटों में असहाय हैं।

    प्लॉट, शहर और जगह की चर्चा – यह प्रतीक है भगवान की आज़ादी और उनकी पहचान पर लगे सामाजिक-पाखंड के बंधनों का। “अयोध्या का प्लॉट” और “मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च” की खोज में भगवान की परेशानियाँ इस बात का संकेत हैं कि धार्मिक संस्थाएँ अब उनके नाम से नहीं, बल्कि मनुष्यों की सत्ता और हिंसा से भरी हैं।

    कवि ने भगवान की उदासी और उनकी मानवीय इच्छा—“थोड़ा आराम करना, बसना, जीना और मरना”—के माध्यम से दर्शन दिया है कि सर्वशक्तिमान भी मानसिक और सामाजिक दबावों से मुक्त नहीं हो सकता। यह रचना धर्म और धार्मिक संस्थाओं पर व्यंग्य का भी माध्यम है। “ग्रैहम स्टेंस और उसके बच्चों की त्रासदी” और “अयोध्या की रात दिन पत्थरों की बरसात” जैसी घटनाओं का उल्लेख सीधे तौर पर सामाजिक और राजनीतिक आलोचना है।

    धर्मग्रंथों और मानव कर्म पर संवाद – भगवान स्वयं बताते हैं कि वे न अच्छा करते हैं न बुरा, यह सब मानव के कर्मों का फल है। “आज तक कोई गुरु-संत-महात्मा आदि मुझसे नहीं मिला, सबके सब खुद ही भगवान बन जाते हैं।” यह रचना धर्म और ईश्वर की पारंपरिक अवधारणाओं पर कटाक्ष करती है और मानव के कर्म और उनकी जिम्मेदारी को प्रमुखता देती है।

    भटकाव, उत्पाती भीड़ और हिंसा – रचना का यह भाग दर्शाता है कि भगवान भी अपने दीवानों के हाथों पीड़ित हो सकते हैं। यह प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है कि जब धार्मिक भावनाएँ पाखंड और कट्टरता में बदल जाती हैं, तो स्वयं ईश्वर भी असुरक्षित हो जाता है। “राम, रहीम, वाहेगुरु, जीसस आदि कई नाम हैं मेरे” यह पंक्ति सार्वभौमिकता और मानव-समाज में ईश्वर की अनदेखी को रेखांकित करती है।

    कुल मिलाकर, जयपाल की यह रचना मानव, धर्म, सत्ता, और ईश्वर के बीच के जटिल और विरोधाभासी संबंधों का दार्शनिक विवेचन प्रस्तुत करती है। भाषा साधारण, प्रवाह सहज, पर अर्थ गहन और तीक्ष्ण है। व्यंग्य, कटाक्ष और संवेदनशील सामाजिक टिप्पणी का मिश्रण इसे समकालीन साहित्य में एक प्रबुद्ध, चिंतक, और आलोचनात्मक दृष्टिकोण वाली रचना बनाता है।

    यह रचना पाठक को सोचने पर मजबूर करती है—क्या धर्म और उसके संस्थान भगवान के नाम पर इंसानों को सजा देते हैं या उन्हें भटकाते हैं? क्या ईश्वर सचमुच सर्वशक्तिमान है, या उनका अस्तित्व और प्रभाव मानव कर्मों के जाल में उलझा है? जयपाल ने इसे बड़े ही रोचक और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया है।

    लेखक समीक्षा: एस.पी. भाटिया

  2. भगवान से एक मुलाकात: वरिष्ठ कवि जयपाल की यह लंबी कविता एक कालजयी रचना है। यह कविता अपने आप में एक लघु काव्य-नाटिका, एक स्किट, एक प्रवाहमय गद्यात्मक रचना भी हो जाती है। मतलबी है कि इस कविता का बहूविध बहु-आयामी उपयोग भी हो सकता है। इसमें हास्य, व्यंग्य और कटाक्ष का ऐसा मोहन सम्मिश्रण है कि यह पूरी उत्सुकता के साथ पाठक को साथ लेकर चलती है और उसे पाखंड के आवरण से मुक्त भी करती रहती है। इतने सरल शब्दों में, इतनी गहरी और विवेकपूर्ण व्यंग्य-रचना हरिशंकर परसाई के बाद कम ही मेरे देखने में आयी हैं। जयपाल जैसी गहरी दृष्टि और स्पष्ट विवेक के कवि को बहुत-बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।

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