हरियाणा के बल्ला गांव की सन् 1857 की जनक्रांति में कुर्बानियों की रोंगटे खड़ी करने वाली दास्तान: एक ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन

इतिहास के झरोखे से

हरियाणा के बल्ला गांव की सन् 1857 की जनक्रांति में कुर्बानियों की रोंगटे खड़ी करने वाली दास्तान: एक ऐतिहासिक पुनर्मूल्यांकन

डॉ. रामजीलाल

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ब्रिटिश के साम्राज्यवादऔर उनके संरक्षण में भारतीय नवाबों ,नरेशों, राजाओं,सामंतों,रजवाड़ों, और रियासतों के खिलाफ सन्1760 से सन्1857 तक आदिवासी किसानों और खेतीहर श्रमिकों तथा मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले किसानों और कृषि श्रमिकों के द्वारा असंख्य  हिंसात्मक सशस्त्र व अहिंसात्मक विद्रोह किए गए.

सन्1857 जन क्रांति से पूर्व हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक किसान जन आंदोलन हुए हैं. इनमें जींद (जून 1814– जनवरी 1815), छछरौली (सन्1818), रानियां (सन्1818 ),किसान आंदोलन (सन्1824), कैथल(मार्च-अप्रैल 1843) ,लाडवा (सन्1845 – सन्1846), करनाल में किसान विद्रोह (सन्18 46–सन्1847) मुख्य हैं. इन किसान आंदोलनों के प्राथमिक कारण बढ़ती गरीबी, भुखमरी और राजस्व दरें थीं. जून 1857 में ब्रिटिश अधिकारी एंड्रयूज ने भारत सरकार को लिखा, ‘मैं देश को काफी अव्यवस्थित पाता हूं; राजस्व और पुलिस अधिकारी राज्य की लड़ाई में हैं, और कई जमींदार और बड़े गांव काफी विद्रोही हैं.’ वास्तव में सन्1857 से पूर्व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध जनता में रोष और असंतोष के कारण जनक्रांति की ज्वाला भड़क रही थी.

इस जनक्रांति में पुराने करनाल जिले के घरौंडा, बल्ला, जलमाना, असंध तथा कलसौरा (कुंजपुरा) क्षेत्रों में जाटों, व कैथल, पूंडरी, कौल,पिपली तथा अमीन क्षेत्र में रोडों,, कुरुक्षेत्र में सैनियों, जाटों और दलितों, लाडवा में सिखों ,इंद्री क्षेत्र में कंबोजों तथा यमुना नदी के दोनों ओर सटे इलाकों में गुर्जरों तथा हिंदू व मुस्लिम श्रमिक जातियों ने आंदोलन में अभूतपूर्व कुर्बानियां दी.

इंद्रजीत सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ,अखिल भारतीय किसान सभा व किसान मोर्चा हरियाणा के सक्रिय सदस्य ने मेरे एक लेख पर व्हाट्सएप पर टिप्पणी करते हुए लिखा कि “स्वतंत्रता की पहली लड़ाई 1857 और उससे पहले और बाद में हरियाणा के क्षेत्र में बेमिसाल कुर्बानियों के सबूत हैं. इनमें सभी जाति व धार्मिक समुदायों ने जिस प्रकार से एकता बनाकर हिस्सा लिया.   वह आज भी सांझी शहादत—– सांझी विरासत के रूप में बेमिसाल कीमती धरहर है.’’ उन्होंने आगे लिखा है कि ‘हमें अपने इतिहास को आत्मसात करने के मामले में गांव-गांव के स्थानीय जन प्रतिरोध की घटनाओं से वाकिफ होना पड़ेगा’’.

इसी कड़ी को  जोड़ते हुए प्रस्तुत है  हरियाणा के प्रसिद्ध क्रांतिकारी बल्ला गांव की सन्1857की जनक्रांति में कुर्बानियों की रौंगटे खडी करने वाली दास्तान.

करनाल से 25 मील दूर बल्ला (जाट बहुल्य) गांव है. इस जनक्रांति में बल्ला गांव की विशेष भूमिका है. हड़सन की मृत्यु कैप्टन ह्यूज के नेतृत्व में दिल्ली से सेना बल्ला गांव में भेजनी पड़ी .बल्ला गांव में कैप्टन ह्यूज़ को भागकर अपनी जान बचानी पड़ी. बल्ला की प्रारंभिक सफलता के पश्चात ब्रिगेडियर हेली फॉक्स ने महाराजा पटियाला की घुड़सवार सेना के सहयोग से बल्ला पर कब्जा करने में सफलता प्राप्त की . प्रारंभिक सफलता के पश्चात महाराजा पटियाला की  सेना की टुकडी 9 जून 1857 को वापस चली गई.फौज के वापस जाने के पश्चात जनता ने पुन: विद्रोह कर दिया.

बल्ला गांव में 1857 की  जन क्रांति से संबधित दो किवदंतियां आज भी  चर्चित हैं:

प्रथम, किवदंति के अनुसार बल्ला की जन सेना  ने अंग्रेज महिलाओं को बैलों की जगह हलों में जोत दिया.

द्वितीय, किवदंति के अनुसार जो मुझे बल्ला के निवासी के रिश्तेदार मेरे पूर्व विद्यार्थी एडवोकेट नरेंद्र सुखन(पुत्र भगतसिंह के साथी कामरेड टीकाराम सुखन) ने   बताई कि प्रारंभिक विजय के पश्चात बल्ला निवासियों ने अंग्रेजी महिलाओं को शिखर दोपहरी में गेहूं के दाने निकालने के लिए बैलों को हॉकने लिए मजबूर  दिय़ा था.लगभग ऐसी ही किवदंती इंद्री खंड़ के कलसौरा (जाट बहुल्य) गॉव में भी प्रसिद्ध है.पंरतु गोरी महिलांओं के मान-सम्मान के विरूद्ध कोई दुर्व्यवहार नहीं किया गया. क्योंकि  क्रांतिकारी संस्कृति महिलाओं के मान -सम्मान पर  आधारित है.

जन क्रांति को दबाने के लिए करनाल से 13 जुलाई 1857 को पंजाब की प्रथम कैवलरी के ढाई सौ सैनिक  कैप्टन हयूज के नेतृत्व में भेजे गए . बल्ला गांव के 900 हिंदुस्तानी जनता के सैनिकों से अंग्रेजों की मुठभेड़ हुई और   कैप्टन ह्यूज़  भाग खड़ा हुआ .इस प्रकार जनता का हौसला बुलंद हुआ. अंग्रेजी सेना के300 सैनिक भारतीय जनता की  सेना की टुकड़ी में सम्मिलित हो गए . गुरिल्ला रणनीति का अनुशरण करते हुए भारतीय जनता के  सैनिक रात को धावा बोलते थे मगर दिन में जंगलों में छुप जाते थे .14 जुलाई 1857 को जब कैप्टन हयूज बिल्कुल हार चुका था. ठीक उसी समय महाराजा पटियाला की सैनिक टुकडी़ पुन: सहायता के लिए आ गई

बल्ला गांव को बिल्कुल तबाह कर दिया. बल्ला गांव में तोपों से लोगों को उड़ाया गया.पुरूषों,महिलाओं ,युवतियों व बच्चों को ऐसी अमानवीय यातनाएं बार-बार दी गई  जिनका वर्णन मेरी कलम नहीं कर सकती. बल्ला गांव में जोहड(तालाब) के पास आज भी विद्यमान पीपल का  विशाल वृक्ष अंग्रेजी व महाराजा पटियाला की सेनाओं के दव्रारा जनता पर किए  अमानवीय अत्याचारों का प्रत्यक्षदर्शी गवाह है. इसी भीमकाय पीपल वृक्ष पर लटका कर असंख्य के  लोगों को फांसी दी गयी.किवदंति के अनुसार पुरूषों ,युवाओं, महिलाओं व युवतियों पर को जमीन पर लेटा कर गिरडो़ं  (रोलर्ज)से रौंदा गया,घरों व संपति  को लूटा व जलाया गया व फसलें उजाड़ दी गयी. चारों ओर तबही मज़र था.

इस क्रांतिकारी आंदोलन के समाप्त होने के पश्चात बल्ला गांव की जनता पर बहुत अधिक मालगुजारी लगा दी गयी. जब एक  साहूकार ने सारे गांव का टैक्स भर दिया तो अंग्रेजी सरकार ने  सेना हटा ली गयी. परंतु अधिक बढ़ी हुई मालगुजारी नहीं . दुर्भाग्य की बात यह है कि बढ़ी मालगुजारी स्वतंत्रता प्राप्ति(15 अगस्त1947) के पश्चात भी 30 वर्षों  तक जारी रही.जननायक ताऊ देवीलाल के संज्ञान जब यह बात लायी गयी तो उन्होंने अपने मुख्यमंत्री काल में सन्1977 में इसे मंसूख किया.

हमारा अभिमत है कि साहित्यकारों, कवियों, लेखकों, पत्रकारों और अन्य बुद्धिजीवियों के द्वारा स्थानीय  ऐतिहासिक घटनाओं के संबंध में लेख लिख  कर सांझी धरोहर को बचाने का प्रयास किया जाए .हरियाणा सरकार से अनुरोध है कि गांव दर गांव जितने भी स्वतंत्रता सेनानी हैं उनके लिए स्मृति स्मारकों का निर्माण किया जाए और उनकी जीवनीयों व कुर्बानियों अवगत कराया जाए .बल्ला गांव में जिस तालाब के किनारे पीपल के वृक्ष से लटका कर स्त्री, पुरुष और युवकों व युवतियों को फांसी दी गई थी अथवा उल्टा लटका कर मारा गया था उसको राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए ताकि आने वाली पीढ़ियां  अपनी सांझी विरासत औरसांझी शहादत को याद रखें.

स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर हम उन सभी महान पुरुषों व महिलाओं को जिन्होंने देश के लिए कुर्बानी की है श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं.

रामजी लाल – लेखक

लेखक सामाजिक वैज्ञानिक और  पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल, (हरियाणा) हैं