सरला माहेश्वरी की कविता – मैं सरकार !

अगस्त क्रांति पर विशेष

देश के जनतंत्र का अपहरण करने वाली सरकार को सत्ता में रहने का कोई हक़ नहीं है।

अंग्रेज़ों भारत छोड़ो का नारा एक ज़ुल्मी, औपनिवेशिक सरकार से मुक्ति की लड़ाई का नारा था । आज तो जैसे सरकार मात्र मनुष्यों की स्वतंत्रता के हरण का औज़ार दिखाई देने लगी है ।

मैं  सरकार !

सरला माहेश्वरी

मैं सरकार
जैसे कोई कारागार
बंधा हुआ आकार
बँधा हुआ सरोकार

भूल गयी न्याय-विचार
भूल गयी प्रतिकार
आता बस नजर
प्रचार और प्रचार

बंद क़िले के द्वार
नहीं सुनाई पड़ता
कोई हाहाकार
लगता मुझे सब नागवार

अब सिर्फ मैं हूँ
मेरा ही दरबार
सब शानदार और चमकदार
सब मेरा ही चमत्कार

सत्ता का अहंकार
मेरा घूँसा, मेरा विचार
जनसंहार
मेरा आहार

शासन की मार
जनता पर सवार
यही इसका सार
बाकी सब निस्सार।

पर जनता की धार
करती जब पलटवार
बचती नहीं कोई मीनार
ढह जाती हर दीवार

ख़बरदार ! होशियार !