9 अगस्त 1942 का अंग्रेजों भारत छोड़ो और जनता की क्रांति जिंदाबाद

अगस्त क्रांति दिवस पर विशेष

9 अगस्त 1942 का अंग्रेजों भारत छोड़ो और जनता की क्रांति जिंदाबाद

        मुनेश त्यागी

भारत में 1942 की और उस वक्त की हालात को देखते हुए गांधीजी ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध “अहिंसक क्रांति” आरंभ करने और “भारत छोड़ो” आंदोलन चलाने के हिमायती बन गए थे।

5 जुलाई 1942 को कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक के समय उन्होंने जोर देकर कहा कि वह समय आ गया है कि कांग्रेस को मांग बुलंद करनी चाहिए …”अंग्रेजों भारत छोड़ो”

गांधीजी यह अहिंसक क्रांति और भारत छोड़ो आंदोलन, भारत में राष्ट्रीय सरकार की स्थापना के लिए करना चाहते थे। गांधी जी ने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन भी अहिंसा के आधार पर होगा, हिंसा को छोड़कर बाकी सारे तौर-तरीके अपनाने की इजाजत होगी। उन्होंने इसे अहिंसक विद्रोह कहा और 14 जुलाई को राष्ट्रीय मांग पर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया। इस प्रस्ताव को सरकार और जनता दोनों ने “भारत छोड़ो” का नाम दिया।

इसमें प्रस्ताव में मांग की गई थी कि ब्रिटिश हुकूमत छोड़ कर चली जाए और भारत को भारतीयों के हाथ में छोड़ दे। 5 अगस्त तक देश के विभिन्न भागों में कांग्रेसी नेताओं की बैठक कर उन्हें आंदोलन का रूप समझाया गया। आंदोलन की रूप रेखा के बारे में आदेश दिए जाते थे, “आंदोलन गांधी जी के आदेशों के अनुसार चलेगा लेकिन अगर सरकार गांधीजी या दूसरे कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार कर लेती है तो सरकार की हिंसा का हरसंभव मुकाबला करने के लिए लोगों को हिंसक या अहिंसक कोई भी तरीका अपनाने की आजादी होगी।”

इसी पृष्ठभूमि में एआईसीसी का बंबई अधिवेशन शुरू हुआ और वर्किंग कमेटी द्वारा तैयार किया गया एक प्रस्ताव 7 अगस्त को पेश किया गया और भारत की आजादी का संघर्ष आरम्भ करने के लिए राष्ट्र का आह्वान किया गया।

अधिवेशन में अध्यक्ष अबुल कलाम आजाद ने कहा …”कौम चुपचाप देखती नहीं रह सकती। अंग्रेज अगर चाहे तो हिंदुस्तान छोड़कर जा सकते हैं। लेकिन हिंदुस्तानी इसे छोड़कर नहीं जा सकते क्योंकि यह उनका मुल्क है। इसलिए उन्हें ऐसी ताकत पैदा करनी होगी जो अंग्रेजों की गुलामी की बेड़ियों को उतार फेंके”। यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गया। यही प्रस्ताव कांग्रेस का इतिहास प्रसिद्ध “अगस्त प्रस्ताव” कहा गया।

8 अगस्त को यह प्रस्ताव पास किया गया और 9 अगस्त 1942 को सवेरे ही कांग्रेस वर्किंग कमेटी के सारे सदस्यों तथा अन्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस गैरकानूनी घोषित कर दी गई।

राष्ट्र के नेताओं की इस गिरफ्तारी के विरुद्ध जन आक्रोश फूट पड़ा जो बिल्कुल उचित और स्वाभाविक था। ब्रिटिश साम्राज्य की चुनौती को उसने चुप रहकर बर्दाश्त नहीं किया। उसने रेलवे स्टेशनों पर हमले किए और रेल की पटरियां उखाडीं, थानों पर हमले किए, उनमें आग लगाई, सडकें काटीं, तार काटे और जो कुछ सरकारी था, उसे नष्ट करने की कोशिश की। जनता अपने गुस्से की आग में उन सब चीजों को नष्ट कर देना चाहती थी जिनका संबंध ब्रिटिश साम्राज्य से था। सरकार ने भी भयंकर दमन का रास्ता अपनाया। सरकारी साहब के अनुसार सारे भारत में इस आंदोलन के दौरान तोड़फोड़ की निम्नलिखित घटनाएं घटीं,,,,,

नष्ट किए गए रेलवे स्टेशन …250

हमला किए गए पोस्ट ऑफिस …550

जलाए गए पोस्ट ऑफिस …50

क्षतिग्रस्त पोस्ट ऑफिस …200

टेलीग्राम और टेलीफोन के तार काटे जाने की वारदातें …3500

खाने जलाए गए …70

अन्य सरकारी इमारत जलाई गई … 85

सरकारी दमन पर एक नजर डाल लेना भी उचित होगा-

गिरफ्तार व्यक्तियों की संख्या … 60,229

भारत रक्षा कानून में नजरबंद …18000

पुलिस या फौज की गोली से मारे गए … 940

पुलिस की गोली से घायल …1630

इस प्रकार इस जनता की क्रांति में 80,799 लोग प्रभावित हुए और उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी।

9 नवंबर 1942 को जयप्रकाश नारायण पांच आदमियों के साथ हजारीबाग जेल से भाग निकले और अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष का आह्वान किया और “आजादी दस्ते” बनाकर, जनक्रांति का कार्यक्रम पूरा करने की कोशिश की। इन कामों की वजह से जयप्रकाश नारायण, आसफ अली, राम मनोहर लोहिया वगैरह का बड़ा नाम हुआ।

अगस्त क्रांति, ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के अन्याय, शोषण गुलामी और दमन के खिलाफ भारतीय जनता का विद्रोह था, उसके राष्ट्र-प्रेम को जितनी दाद दी जाए कम है।

1942 का “अंग्रेजों भारत छोड़ो” आंदोलन पूरे देश शहरों, नगरों, कस्बों और गांवों में फैल गया। भारत की आजादी के आंदोलन और भारत अंग्रेजों भारत छोड़ो के आंदोलन में हमारा गांव यानी “रासना”, जिला मेरठ, भी पीछे नहीं था। भारत छोड़ो आंदोलन में हमारे गांव रसना से 17 स्वतंत्रता सेनानी मेरठ जेल में बंद किए गए थे। उनके नाम इस प्रकार हैं,,, 1.महाशय सागर सिंह, 2.ओम प्रकाश त्यागी, 3.प्रणाम सिंह त्यागी, 4.मास्टर रघुवीर सिंह त्यागी, 5.रतिराम त्यागी, 6.रेवा सिंह त्यागी, 7.सूरत सिंह त्यागी, 8.काले सिंह त्यागी, 9.भ्रंग शर्मा, 10. भिक्कन सिंह त्यागी, 11.सेठ फूल सिंह, 12.मास्टर सुंदरलाल छज्जू, 13. जहरिया 14.मिट्ठू लाल, 15.डालचंद त्यागी, 16.उमराव सिंह, 17.मुंशी।

बेहद खुशी की बात है और यह हकीकत हमारा सिर गर्व से ऊंचा कर देती है कि अंग्रेजों भारत छोड़ो के आंदोलन में हमारे गांव से जो 17 लोग मेरठ जेल गए थे, उनके नेता महाशय सागर सिंह थे और वे अपने दो बेटों ओम प्रकाश त्यागी और प्रणाम सिंह त्यागी के साथ जेल गए थे। इनमें महाशय सागर सिंह हमारे दादाजी और ओमप्रकाश त्यागी और प्रणाम सिंह त्यागी हमारे ताऊजी थे। हमने बचपन में इन सब स्वतंत्रता सेनानियों की बातें सुनी थीं और जनता और किसानों की दुर्दशा देखकर, वे बेहद अफसोस के साथ कहा करते थे कि “यह हमारे सपनों का भारत नहीं है।” हमें बेहद खुशी है कि हम उन स्वतंत्रता सेनानियों के सारी जनता को आजादी के सपने को पूरा करने के अभियान में जुड़े हुए हैं और हमारा मानना है कि जब तक इस देश में किसानों मजदूरों की सत्ता और सरकार कायम नहीं होगी, तब तक स्वतंत्रता सेनानियों के “अंग्रेजों भारत छोड़ो” और आजादी के नारों और सपनों को, धरती पर नहीं उतारा जा सकता है।