गरीबों को शिक्षा से वंचित करो अभियान

गरीबों को शिक्षा से वंचित करो अभियान

मुनेश त्यागी

 

सारे देश में सरकारी प्राइमरी स्कूल बंद करने का अभियान चला हुआ है। यह अभियान भाजपा शासित राज्यों में तेज गति से चल रहा है। यह अभियान चलाने में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है, जहां पर 27 000 प्राइमरी पाठशालाओं को मर्ज यानी बंद करने की योजना है। योगी सरकार का कहना है कि वह सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना और बढ़ाना चाहती है।

सरकार ने यह अभियान शुरू करने से पहले शिक्षा विशेषज्ञों, राजनीतिक दलों से कोई चर्चा नहीं की, उनकी राय जानने की कोशिश भी नहीं की है। उसका कहना है कि प्राइमरी पाठशालाओं में विद्यार्थियों की संख्या में कमी आ गई है जिस कारण उनका दूसरे विद्यालयों के साथ मर्जर किया जा रहा है। माना कि प्राइमरी पाठशालाओं में शिक्षा को लेकर कुछ समस्याएं सामने आ रही हैं, मगर सरकार ने सही समाधान ढूंढने के बजाय, सरकारी स्कूलों को मर्ज करने यानी स्कूल बंद करने का अभियान चला दिया।

हकीकत यह है कि सरकारी स्कूल देश के गरीब, मजदूर, किसान और वंचित समाज के बच्चों को आगे बढ़ाने की पहली सीढ़ी हैं। उत्तर प्रदेश सरकार पूरे प्रदेश में 27000 स्कूलों को बंद करने का फैसला कर चुकी है, मगर अफसोस की बात है कि वह स्कूलों का मर्जर यानी बंद करने का कारण नहीं बता रही है। वह कह रही है कि स्कूलों में बच्चों की कमी है, इसलिए स्कूल बंदी की योजना बनाई गई है। वह यह नहीं बता रही है कि उसने पिछले चार-पांच साल में कितने प्राइमरी स्कूल खोले। इसकी हकीकत देखिए… बीजेपी सरकार ने 2017 से 2020 तक मात्र 244 स्कूल बनाए, समाजवादी पार्टी ने 2012 से 2017 तक 4,146 सरकारी स्कूल खोले थे और बीएसपी की सरकार ने अपने कार्यकाल में 27,436 सरकारी स्कूल बनाए थे। वर्तमान यूपी सरकार यह भी नहीं बता रही है कि सरकारी स्कूलों में कितने शिक्षक काम कर रहे हैं? उसने पिछले 7-8 साल में कितने सक्षम शिक्षकों की नियुक्ति की है?

यहां पर यह अहम सवाल उठता है कि स्कूलों में बच्चों की कमी क्यों है? मां-बाप सरकारी स्कूलों में बच्चे क्यों नहीं भेज रहे हैं? स्कूलों की हालत खराब क्यों है? स्कूलों में बच्चों के अनुपात में शिक्षक क्यों नहीं है? स्कूलों में स्वास्थ्य, तकनीकी, औद्योगीकरण, कम्प्यूटरीकरण आदि विषयों की वर्तमान आधुनिकतम शिक्षा क्यों नही दी जा रही है? क्या सक्षम शिक्षकों के अभाव में और आधुनिक उच्चतम शिक्षा के सिद्धांतों के बगैर उत्तर प्रदेश और हमारा देश आगे बढ़ सकता है? सरकार इन अहम सवालों पर बिल्कुल मौन है। सुनने और जानने के बाद भी वह इनका जवाब नहीं दे रही है।

स्कूलों में बच्चों की कमी के कई कारण हैं। सरकार इन जिम्मेदारियां से बच रही है, वह इन्हें छिपा रही है और जानबूझकर इन्हें नहीं बता रही है। हकीकत यह है कि स्कूलों में अच्छे पुस्तकालयों, प्रयोगशालाओं, कंप्यूटर की आधुनिक शिक्षा, खेल के मैदान और खाने-पीने की सुविधाओं का भंयकर अभाव है। सरकारी टीचरों को स्कूल में पढ़ाने के अलावा ट्यूशन पढ़ाने की बीमारी पैदा हो गई है। नेताओं द्वारा सरकारी स्कूलों का दुरुपयोग किया जा रहा है, जहां शिक्षकों और छात्रों द्वारा नेताओं की चमचागिरी होती है, चुनावों के दौरान स्कूल शिक्षकों और छात्रों का दुरुपयोग किया जाता है, स्कूलों में आधुनिकतम शिक्षा, औद्योगिक क्रांति, माइक्रोचिप, सूचना तकनीक और विकसित प्रबंधन का पूर्णतया अभाव है। इन सब कारणों से मां-बाप अपने बच्चों को इन संसाधनविहीन स्कूलों में भेजने की स्थिति में नहीं हैं।

इसी के साथ-साथ यह मुद्दा भी सामने आया है की सरकार बच्चों के आधार कार्ड के बिना स्कूलों में दाखिला नहीं दे रही है। मगर यहीं पर यह हकीकत है कि आधार कार्ड बनाने का आसान रास्ता लोगों के पास नहीं है, जिस कारण में समय से आधार कार्ड नहीं बनवा पाते और उनके बच्चों का प्राइमरी स्कूलों में दाखिला नहीं हो रहा है। सरकार शिकायत करने के बावजूद भी, इस बारे में कोई कदम नहीं उठा रही है और छात्रों के मां बाप को इस बेहद परेशान करने वाली समस्या का समाधान नहीं कर रही है।

सरकार ने इन कमियों को तो दूर नहीं किया और उसने सीधे स्कूलों के मर्जर की प्लान बना ली। सरकार की नीतियों के अनुसार बंद किए जाने वाले स्कूलों को तीन चार किलोमीटर दूर विद्यालयों के साथ मर्ज किया जाएगा। उसने उन स्कूलों में बच्चों को ले जाने के लिए बस वगैरह का कोई इंतजाम नहीं किया है। सवाल उठता है कि छह-सात साल का बच्चा या बच्ची, चार-पांच किलोमीटर दूर स्कूल में कैसे जा सकते हैं? उसको कौन ले जाएगा,  कौन लेकर आएगा? वह कैसे सड़क पार करेगा? इसका सरकार ने कोई इंतजाम नहीं किया है। इसी के साथ-साथ इन पाठशालाओं में काम कर रहे लाखों शिक्षकों और कर्मचारियों की नौकरियां खत्म हो जाएंगी, उनकी रोजी-रोटी छिन जाएगी। वे अपने बच्चों के साथ बेकार होकर सड़कों पर आ जाएंगे, सरकार उनके जीवन यापन और रोजगार के बारे में क्या करेगी, इस बारे में उसकी कोई योजना नहीं है।

सरकार ने पिछले कई सालों तक खाली पड़े हजारों पदों पर सक्षम शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की है। स्कूलों में छात्रों के अनुपात में शिक्षक नहीं हैं। शिक्षा के क्षेत्र में जो समस्याएं आ रही हैं, सरकार ने उनका समाधान करने की कोई कोशिश नहीं की है। बस उसने सीधा-सीधा स्कूल मर्जर करने का अभियान छेड़ दिया है। इस अभियान को देखकर यह प्रतीत हो रहा है कि जैसे सरकार गरीबों से शिक्षा का अधिकार छीन लेना चाहती है, वह गरीबों के बच्चों को पढ़ने ही नहीं देना चाहती, क्योंकि इन परिस्थितियों में गरीबों के बच्चे स्कूल में नहीं जा सकेंगे, वे शिक्षा ग्रहण नहीं कर सकेंगे। जब बच्चे शिक्षित नहीं होंगे, तो गरीबों के बच्चे नौकरी नहीं कर पाएंगे, आरक्षण की मांग नहीं कर पाएंगे और वे गरीब होकर वंचित, पीड़ित, अभावग्रस्त और गुलाम बन जाएंगे यानी हमारा देश आजादी से पहले की अवस्था में पहुंच जाएगा, जहां गरीबों के बच्चों को पढ़ने का कोई अधिकार नहीं था।

सरकार छिपे तौर पर हमारे देश में गरीबों के लिए मनुवादी स्थिति व्यवस्था लागू करना चाहती है जिसमें गरीबों के बच्चे बच्चियों को पढ़ने लिखने का कोई अधिकार नहीं था। उनका कोई सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और क्षैक्षिक अधिकार नहीं था, बस उनका काम था कि सवर्णों की सेवा करो, उनकी गुलामी करो और गुलामों की अधिकारविहीन जिंदगी जिओ। सरकार की वर्तमान मर्जर की नीति भी करोड़ों गरीबों एससी, एसटी और ओबीसी के बच्चों और लाखों शिक्षकों और कर्मचारियों नौकरी छीनने को उसी दिशा में ले जा रही हैं जो भारतीय संविधान के शिक्षा के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है, जो शिक्षा के अधिकार, नई शिक्षा नीति और शिक्षा अधिकार अधिनियम का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन है। इन्हें किसी भी दशा में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

यहीं पर अफसोस की बात है कि भारत की अधिकांश विपक्षी पार्टियों ने अभी तक इस योजना के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई है। अब यह भारत की जागरूक जनता और नागरिकों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वे जनता के बीच में जाएं, लोगों को जागरूक करें और सरकार पर दबाव डालें कि सरकारें स्कूल बंद करने की नीति के अभियान को बंद करें और शिक्षा के सिद्धांतों और अधिनियमों के अनुसार, भारत की गरीब जनता के बच्चे बच्चियों को आधुनिक तौर तरीकों से परिपूर्ण शिक्षा प्रदान करें, ताकि गरीब, वंचित, पिछड़े मजदूरों किसानों के बच्चे-बच्चियां आधुनिक और तकनीक युक्त शिक्षा लेकर, सक्षम बन सकें और इस देश को आधुनिक शिक्षा और विकास के मार्ग पर आगे बढ़ा सकें और अपना भी समुचित विकास कर सकें।