मसूरी डायरी – 4
मसूरी की सबसे बड़ी और रहस्यमयी प्रापर्टी, जहां सालों से ताला
संजय श्रीवास्तव
अगर ये दोनों तस्वीरें देख रहे हैं तो बता दूं कि एक तस्वीर 15 साल पहले तब की है, जब मैं पहली बार लंढोर गया. दूसरी तस्वीर बिल्कुल हालिया है. दोनों में कोई खास अंतर नहीं है. बस बगल में ये एक रेस्तरां आ गया है, जो दावा करता है कि ऊपर चढ़कर आप आसपास का पूरा व्यू ले सकते हैं. इसके आसपास तो प्रकृति का मंत्रमुग्ध कर देने वाला जादू बिखरा पड़ा है. एस्टेट के बगल में वादियां हैं. वादियों में देवदार के ऊंचे पेड़. उसके परे हिमालय की पर्वत श्रृंखलाएं.
15 साल पहले लंढौर वाकई और खूबसूरत थी और जन्नत जैसी भी. अब भी है लेकिन अब भीड़ बढ़ गई है. तब कोई इधर फटकता भी नहीं था, यहां के खास वाशिंदों के सिवा. ऐसी जगह में इनकी बड़ी प्रापर्टी और वो भी करीब करीब वीरान. गेट पर ताला लगा हुआ. ये चेतावनी, ये प्राइवेट प्रापर्टी है, इसमें बिना इजाजत जा नहीं सकते. आपको बता दूं कि ये मसूरी लंढौर की शायद सबसे बडी प्राइवेट प्रापर्टी है, 312 एकड़ की. पहाड़ों के ऊपरी सिरे पर. नाहटा एस्टेट. मतलब किसी नाहटा साहब की संपत्ति. तब उनके बारे में कुछ नहीं मालूम था. आज भी ज्यादा नहीं. इतनी बड़ी प्रापर्टी के इस तरह वीरान होना हैरान तो करता ही है. ना जाने क्या सोचकर उस समय इसकी फोटो खींच ली. वो फोटो मेरे संकलन में सुरक्षित भी रही.
अब इतने सालों बाद जब वहां दोबारा जाने का मौका मिला, तो सबसे पहला खयाल यही आया कि अब तो नाहटा एस्टेट आबाद हो चुका होगा. वहां जाने पर खूबसूरत बंगला और बेहतरीन लॉन नजर आएगा. तो जैसे ही टैक्सी वाले ने वहां छोड़ा तो नाहटा एस्टेट की वीरानगी तो अब भी ज्यों की त्यों थी लेकिन उसके ठीक बगल में एक दुकाननुमा रेस्तरां उग आया था.
वैसे आपको बता दें कि अंग्रेजों के जमाने में इस एस्टेट को चाइल्डर्स लॉज कहा जाता था. शायद ये अंग्रेज अफसरों के रहने की जगह थी. इसमें दुनिया का सबसे ऊंचा टेनिस कोर्ट भी था. शायद स्विमिंग पूल और दूसरी सुविधाएं भी. आजादी के तुरंत बाद ये बिक गया. इसके बिकने की कहानी का कुछ खास पता नहीं लगता. हालांकि डीपसीक एआई ने इसे काफी रोचक तरीके से बयां किया है. हालांकि इसे बहुत विश्वसनीय नहीं कहा जा सकता.
तो ये नाहटा कौन हैं, जिन्होंने अपना इतना लंबा चौड़ा एस्टेट 15 सालों से ज्यों का त्यों छोड़ा हुआ है, जो लंढौर की शायद सबसे महंगी प्रापर्टी होगी. लोगों की फोटोग्राफ खींचने का काम कर रहे वीर से जब सवाल किया, भाई क्यों इतने सालों से वीरान पड़ा है तो पहली बार में उन्होंने हमारी उत्सुकता रूपी इस गेंद को खेलने की कोशिश ही नहीं की. इसके लिए उनसे दो फोटोग्राफ्ट खिंचवानी पड़ी. हालांकि इस युवा फोटोग्राफर ने शानदार फोटो खींची.
तब उसने इस प्रापर्टी के गेट के बायीं ओर लगी संगमरमर पट्टिका की ओर इशारा किया, जिसमें सबसे ऊपर नाम था हरख चंद नाहटा, फिर ललित नाहटा, प्रदीप और फिर दिलीप नाहटा. अब उसने कुछ बयां किया, देखिए जैसे हर घर में होता है वैसा यहां भी हुआ. संपत्ति की कलह थी. बाप हरख चंद ने इसको खरीदा. बेटे लड़ गए. अब सारा मामला सुलझ गया है. इसमें 75 कॉटेज बनेंगे, जिसको बेचा जाएगा. इस स्टोरी में मुझको इसलिए विश्वास नहीं है कि यहां इतने लोगों की कॉटेज बनाने की अनुमति नहीं मिलेगी, क्योंकि इससे इलाके में रेलमरेल और बढ़ेगा. हालांकि हो भी सकता है. लेकिन असली कहानी तो अब शुरू होती है.
हरख चंद नाहटा राजस्थान के बीकानेर में पैदा हुए मारवाड़ी थे. दूसरे मारवाड़ियों की तरह उनका परिवार भी कोलकाता कूच कर गया था. वहां उन्होंने रियल एस्टेट से लेकर सड़क निर्माण तक कई कारोबार में पैर पसारे. बहुत पैसे पीटे. लेकिन उन्हें असली नाम तब मिला जब उन्होंने बंगाली फिल्मों के लिए निर्माता का काम शुरू किया. इसमें मोटा पैसा निवेश किया. उनकी फिल्मों को सत्यजीत रे से लेकर मृणाल सेन तक ने डायरेक्ट किया. हरख चंद नाहटा ने कोलकाता में टेक्नीशियन स्टूडियो को टेकओवर किया. उसे फिर जिंदा किया. इसे स्टूडियो से सत्यजीत रे, ऋत्विक घटक और बसु भट्टाचार्य जैसे दिग्गज निर्देशकों ने फिल्में बनाईं.
डीपसीक एआई के अनुसार, हरख चंद प्रतिष्ठित मारवाड़ी व्यापारी परिवार से थे, जो लकड़ी, अफीम और बाद में ज़मीन के सौदों में माहिर था. आजादी के बाद या उसके आसपास कई ब्रिटिश परिवार मसूरी और लैंढोर में अपनी संपत्तियाँ बेच रहे थे. उन्होंने इसका फायदा उठाया. वह इस सौदे की तीन थ्योरी देता है
कहानी का पहला संस्करण – चालाकी से खरीदारी
एक मशहूर दावे के अनुसार, हरख चंद ने ब्रिटिश मालिक को मात दे दी. ब्रिटिश व्यक्ति पैसों की ज़रूरत में था, इसलिए उसने संपत्ति कम दाम पर बेचने की हाँ भर दी. नाहटा ने कुछ पैसे नकद दिए. कुछ वचन पत्र (Promissory Notes) पर वादा किया लेकिन फिर बाद में पूरा चुकाया नहीं.
कहानी का दूसरा संस्करण: नशे में हुआ सौदा
एक और रोचक (लेकिन शायद बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई) कहानी ये है कि इसका ब्रिटिश मालिक शराब का आदी था. नाहटा ने उसे नशे में धुत करके दस्तखत करवा लिए. होश आने पर अंग्रेज़ को एहसास हुआ कि उसने संपत्ति सस्ते में गंवा दी, लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था.
कहानी का तीसरा संस्करण: “भूतहा” बंगले का धोखा
एक और अफवाह यह है कि ब्रिटिश मालिक जल्दी बेचना चाहता था क्योंकि बंगला “भूतहा” माना जाता था. नाहटा को भूतों में यकीन नहीं था, इसलिए उन्होंने इसे सस्ते में खरीद लिया.
हालांकि तीनों ही कहानियां सच्चाई के आसपास नहीं लगतीं और इनका सही विवरण भी नहीं मिलता. सच केवल ये है कि दशकों से ये प्रापर्टी करीब बंद ही पड़ी है. मसूरी के कुछ पुराने लोगों का कहना है कि नाहटा के सौदे ने भारतीय व्यापारियों द्वारा ब्रिटिश संपत्तियों पर कब्ज़े की शुरुआत की. कुछ अनुमानों के अनुसार, यह संपत्ति विरासत के झगड़ों या लीगल हेरफेर के कारण “लॉक्ड-इन” स्थिति में है.
नाहटा परिवार के कोलकाता कनेक्शन के कुछ प्रमाण कोलकाता के मारवाड़ी एसोसिएशन के रिकॉर्ड्स और पुराने अखबारों में मिलते हैं. अब ये परिवार नाहटा ग्रुप के नाम से बड़ी कंपनी चलाता है. उनका बिजनेस डाइवर्सिफाइड है. परिवार के बिजनेस कई शहरों में फैले हुए हैं. नाहटा ग्रुप की एक वेबसाइट है, जो कहती है. ये समूह दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और तमिलनाडु में कृषि और कृषि भूमि के विकास में शामिल है. उसके पास 1100 एकड़ से अधिक का संयुक्त भूमि बैंक है. ग्रुप आक्रामक रूप से विस्तार भी कर रहा है.
इंस्टाग्राम में नाहटा एस्टेट का एक हैंडल है, जिसमें यहां की कुछ तस्वीरें हैं. इसमें बताया गया है कि यहां दुनिया का सबसे ऊंचा टेनिस कोर्ट था. ऊंची रैंकिंग वाले ब्रिटिश अधिकारी 1800 के दशक के अंत और 1900 के दशक के मध्य में गर्मियों के दौरान यहां आकर रुकते. ये एस्टेट 7400 फ़ीट से भी ज़्यादा ऊंचाई पर है. इंस्टाग्राम की पोस्ट कहती है कि इस संपत्ति का स्वामित्व 1990-91 से नाहटा परिवार के पास है.
वैसे आपको बता दूं कि इसी नाहटा ग्रुप ने ‘उस्ताद’, ‘आवारगी’, ‘गंगा जमुना सरस्वती’, ‘कर्मयोद्धा’ और ‘मार्ग’ जैसी कुछ प्रसिद्ध मल्टी-स्टारर हिंदी फिल्मों में फाइनेंस भी किया था, जिसकी अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, हेमा मालिनी, राज बब्बर, अनिल कपूर, डिंपल कपाड़िया जैसे फेमस स्टार एक्टर शामिल थे.
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लेखक – संजय श्रीवास्तव
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