मंजुल भारद्वाज
सभी प्राणियों की भांति
मनुष्य भी नाख़ून लिए
पैदा होता है
नाख़ून शस्त्र है
प्रतिरक्षा में
दबोचने में
हिंसा !
प्राणियों के पेट भरने का
अहम औज़ार है नाख़ून !
क्या मनुष्य का जीवन लक्ष्य
सिर्फ़ पेट भरना है?
देखने,सूंघने,सुनने
स्वाद और स्पर्श का भान
सभी प्राणियों में होता है
विचार क्षमता मनुष्य को
प्राणियों से अलग करती है !
पर मनुष्य है की
जीवन भर प्राणी बना रहता है !
पेट
विचार को दबाए रखता है
पेट
मनुष्य का संचालन करता है
पेट
मनुष्य की दशा – दिशा
तय करता है
जीवन भर !
मनुष्य ने
पेट के नीचे दबे रहने के लिए
सूक्तियां गढ़ ली हैं
भूखे भजन ना होए गोपाला
प्रकृति में पेट भरने के अपार
संसाधनों के बावजूद
सबसे ज्यादा
भूख से मरता है मनुष्य
क्यों?
पेट पालने को
जीवन लक्ष्य मानने वाला
भूख से मर जाता है !
जिसके जितने बड़े नाख़ून
उसका उतना संसाधनों पर कब्ज़ा
वो बड़े नाख़ून वाला
चंद सिक्के फ़ेंक
दुनिया के पेट वालों को
अपना गुलाम बनाता है !
सारे पेट वाले
रेंगते हैं
उस बड़े नाख़ून वाले के पैरों में
वो अपने पंजे में दुनिया को दबोच
दाने दाने के लिए तरसाता है
पेट वालों को
क्यों?
वो बड़े नाख़ून वाला कौन है?
हर मनुष्य जो सोचने की क्षमता का प्रयोग
बाक़ी मनुष्यों पर एकाधिकार के लिए करता है
वो बड़े नाख़ून वाला है !
हर वो व्यक्ति जो एकाधिकारवाद में लिप्त है
वो बड़े नाख़ून वाला है !
यह बड़े नाख़ून वालों की संख्या
कुल मनुष्य आबादी का दो फ़ीसदी है
यानी पूरी दुनिया की सारी सम्पदा पर
दो फ़ीसदी नाख़ून वालों का कब्ज़ा है !
97 फ़ीसदी मनुष्य का शरीर लिए
प्राणियों का जीवन जीते हैं
जीवन भर पेट के बल रेंगते हैं
ऊपर से अपने को मनुष्य भी कहते हैं
अपने आस पास भूख से मरते मनुष्य को
देखते रहते हैं
वो जानते हैं की बड़े नाख़ून वाले ने मारा है उसे
पर ‘होइहि सोइ जो राम रचि राखा’ के लिहाफ़ में लिपटकर
बड़े नाख़ून वाले का जयकारा लगाते हैं !
यह दो फ़ीसदी बड़े नाख़ून वाले
पाषाण युग से लोकतंत्र तक
वाया सामंतवाद की यात्रा करते हुए
अपना रूप रंग गिरगिट की तरह बदलते हैं !
यूँ तो बड़े नाख़ून वाले
अपने को आधुनिक
मानवतावादी बताते हैं
लोक तंत्र यानी लोगों का राज बताते हैं
पर यह बड़े नाख़ून वाले
97 फ़ीसदी मनुष्य रूपी प्राणियों के सामने
बड़ी निर्ममता से लोक का खून चूसते हैं !
वैसे तो 97 फ़ीसदी मनुष्य रूपी प्राणी
शिक्षा,दीक्षा,संस्कार,संस्कृति
सभ्यता नाम के अक्षरों का जाप करते हैं
पर बड़े नाख़ून वाले के गुलाम बने रहना ही
अपना मुस्तक़बिल समझते हैं !
कभी कभी सदियों में
इन बड़े नाख़ून वालों को चुनौती देने वाले
मनुष्य पैदा होते हैं
जो पेट भरने को
अपना जीवन लक्ष्य नहीं मानते
वो समता,न्याय,विविधता
इंसानियत को अपना जीवन लक्ष्य मानते हैं !
97 फ़ीसदी मनुष्य रूपी प्राणियों की भीड़ में
मनुष्य बोध जगाते हैं
यह मनुष्य विचारक
विवेक के आलोक से ओतप्रोत
सृजनकार
कलाकार
वैज्ञानिक
कभी कभी राजनेता भी कहलाते हैं !
यह मनुष्य नाखूनों को काटते हैं
यानी अपनी हिंसा को नियंत्रित कर
अहिंसा के पथ पर चल
मनुष्य को मनुष्य होने का बोध कराते हैं !
मानवता का बोध कराने वाले
यह मनुष्य कुल आबादी का
सिर्फ़ एक फ़ीसदी होते हैं !