निज़ार कब्बानी सीरियाई कवि, राजनयिक तथा प्रशासक रहे। उनका जन्म 1923 में हुआ और 1998 में उनका निधन हो गया। अरबी दुनिया के महानतम कवियों में गिने जाने वाले निज़ार कब्बानी की कविताओं में प्रेम की अभिव्यक्ति के साथ स्त्री की आजादी का भाव भी व्यक्त हुआ है।
संक्षिप्त प्रेम पत्र
मेरी प्रिय, मुझे बहुत कुछ कहना है
ओ प्रेयसी मैं कहाँ से शुरू करूँ?
तुम में जो कुछ भी है वह वैभवशाली है
यह तुम ही हो जो मेरे शब्दों को अर्थ देती हो!
रेशमी धागे से
ये मेरे गीत हैं और मैं हूॅं
इस लघु पुस्तक में हम दोनों हैं
कल जब मैं इसके पन्ने पलटुंगा
दीपक विलाप करेगा
बिस्तर गाएगा
लालसा से इसके अक्षर हरे हो जायेंगे
इसका अल्पविराम उड़ने के कगार पर होगा
ऐसा मत कहो: इस युवक ने मुझको क्यों बताया
घुमावदार रास्ते और झरने के बारे में
बादाम का पेड़ और फ़ूल के बारे में
ताकि मैं जहां भी जाऊं दुनिया मेरा साथ दे?
उसने ये गीत क्यों गाए?
अब कोई सितारा नहीं है
जो मेरी ख़ुशबू से सुगंधित नहीं है
कल लोग मुझे उसकी कविता में देखेंगे
मुँह में शराब की बू, कटे हुए छोटे बाल
ध्यान न दो जो कुछ लोग कहते हैं
तुम महान बनोगी अगर मेरा प्यार महान होगा
हम न होते तो दुनिया कैसी होती
अगर तुम्हारी आंखें न होती तो दुनिया कैसी होती?
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चित्रकारी का एक सबक
मेरा बेटा रख देता है मेरे सामने अपना चित्रकारी का साजो़-सामान
और मुझसे कहता है एक पक्षी बनाने के लिए
मैं ब्रश को डुबोता हूं स्लेटी रंग में
और ताले और सलाखों के साथ एक चौकोर बनाता हूं
उसकी आँखें हैरान हो जाती हैं:
‘… लेकिन यह तो कैदख़ाना है, अब्बू,
क्या आपको पक्षी बनाना भी नहीं आता?’
*और मैं कहता हूं: ‘बेटा, मुझे माफ़ करना।
मैं भूल गया हूं पक्षियों की आकृति बनाना।’
मेरा बेटा रख देता है मेरे सामने अपनी ड्रॉइंग बुक
और मुझे गेहूं की बालियां बनाने को कहता है।
मैं कलम लेता हूं
और एक बंदूक बना देता हूं।
मेरा बेटा मेरी नासमझी पर हंस देता है,
अपेक्षा से कहता है,
अब्बू, क्या आपको गेहूं की बालियां और बंदूक का फ़र्क भी नहीं पता?
मैं उसको कहता हूं, ‘बेटा, मैं जानता था बहुत पहले
गेहूं की बालियां, रोटी और गुलाब की आकृतियों के बारे में
लेकिन इस कठिन समय में
पेड़ भी मिल गए हैं फ़िरका-परस्तों से
और गुलाब ने भी ओढ़ ली है उदासीन थकान
इस सांप्रदायिक समय में गेहूं की बालियां और पक्षी हो गए हैं हथियारबंद
फ़िरका-परस्त संस्कृति और धर्म हो गए हैं सांप्रदायिक
बिना बन्दूक के ख़रीद नहीं सकते हो तुम एक रोटी भी
खेत से तोड़ नहीं सकते हो एक गुलाब भी
जब तक आपके चेहरे पर उग न आए कांटे
तुम एक किताब भी नहीं ख़रीद सकते
जब तक हो न जाए विस्फोट तुम्हारी उंगलियों में।
बिस्तर के किनारे बैठा है मेरा बेटा
और एक कविता सुनाने के लिए कहता है,
तकिए पर मेरी आंख से आंसू छलकता है
मेरा बेटा मेरे आंसू पोंछता है और हैरान होकर कहता है:
‘लेकिन अब्बू यह तो आंसू है, कविता नहीं’
और मैं उसे बताता हूं:
‘मेरे बेटे, जब तुम बड़े हो जाओगे
और अरबी शायरी का दीवान पढ़ोगे
तुम स्वयं जान जाओगे कि शब्द और आंसू एक ही हैं
और अरबी कविता
आंसू के सिवाय कुछ नहीं
जो रोते हुई अंगुलियों से लिखी गई है।’
मेरा बेटा अपनी कलम, अपने रंग वाले बक्से को रखता है मेरे सामने
और मातृभूमि बनाने के लिए कहता है
और मैं रोते हुए सिर झुका लेता हूं।
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एक बेअक्ल औरत का खत
(एक मर्द के लिए)
मेरे प्यारे आक़ा
यह एक बेअक्ल औरत का खत है
क्या मुझसे पहले भी किसी ज़ाहिल औरत ने तुम्हें खत लिखा है?
मेरा नाम? चलो छोड़ो मेरा नाम
रनिया, ज़ैनब
या हिंद या फिर हायफा
मेरे आका, हमारे पास जो सबसे ज्यादा बचकाना चीज़ है – वो बस नाम ही हैं ।
मेरे आका:
मैं अपने विचार आपको बताने से डरती हूं
मैं बहुत डरी हुई हूं –
अगर मैंने ऐसा किया –
ये जन्नतें जल उठेंगी
क्योंकि मेरे प्यारे आका, आपके मशरिक़ में
ज़ब्त कर लीं जाते हैं नीले नीले खत
स्त्री की छाती में दफ़न खजाने से ख्वाबों को ज़ब्त कर लिया जाता है
औरतों के जज़्बातों को कुचलने का यहाँ रिवाज़ है
इसके लिए चाकुओं का इस्तेमाल करो
या फिर धारदार छूरे का …
जब स्त्रियों से बात करने के लिए
और क़साई वाला वसन्त और जुनून
और काली चोटियां
और मेरे प्यारे आका आपका मशरिक़
मशरिक़ के नाज़ुक मुकुट बनता है स्त्रियों की खोपड़ियों में
मेरे आका, मेरी आलोचना न करो
अगर मेरी लिखावट ख़राब है
क्योंकि मैं लिखती हूं और तलवार मेरे सिर पर लटकती है
और कमर के पीछे हवा की
और कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आती है
मेरे आका!
मेरे दरवाज़े के पीछे अंतार अल अब्यास है!
वह मुझे मार डालेगा
अगर वो मेरी चिट्ठी देख लें
वह मेरे चिथड़े कर देगा
अगर मैं अपने जुल्मों की दास्तां उसे सुनाऊं
वह मेरा सिर धड़ से जुदा कर देगा
अगर वो मेरे कपड़ों की कोमलता देख ले
मेरे प्यारे आका, आपके साथी के लिए
स्त्रियों को भालों से घेर लेता है
मेरे प्यारे आका, आपके साथी के लिए
मर्दों को चुनता है पैगम्बर बनाने के लिए
और औरतों को मिट्टी में दफ़न करता है।
नाराज मत होइए !
मेरे आका, इन बातों से
परेशान मत होइए!
अगर मैं सदियों से दफ़न गिले शिकवे की हद पार कर दूं
अगर मैं होश में आ जाऊं
अगर मैं भाग जाऊं…
महलों में हरम के गुंबदों से
अगर मैंने बगावत की, अपनी मौत के ख़िलाफ़…
मेरी कब्र के ख़िलाफ़, मेरी जड़ों के ख़िलाफ़…
और विशाल बूचड़खाना…
नाराज़ मत होइए, मेरे प्यारे आका
अगर मैंने तुम्हें अपनी भावनाएं बतायीं
पूर्वी आदमी के लिए
कविता या भावनाओं से कोई सरोकार नहीं है
पूर्वी आदमी – और मेरी गुस्ताखी माफ कर दो – महिलाओं को नहीं समझता
लेकिन चादरों के ऊपर
मैं माफ़ी चाहूंगी मेरे आका – यदि मैंने पुरुषों के क्षेत्र पर धृष्टतापूर्वक आक्रमण किया है
बेशक महान साहित्य के लिए –
पुरुषों का साहित्य है
और मुहब्बत हमेशा से रही है
पुरुषों की बपौती…
और सेक्स हमेशा से रहा है
पुरुषों को बेची जाने वाली एक दवा
हमारे देशों में महिलाओं की आज़ादी रही है पुरानी परियों की कहानी
क्योंकि वहां कोई मुक्ति नहीं है
पुरुषों की आज़ादी के अलावा…
मेरे आका
तुम मुझसे जो चाहो कहो।
यह मेरे लिए कोई मुद्दा नहीं है:
छिछला.. मूर्ख.. पागल.. सरल मन वाला
अब मुझे इसकी चिंता नहीं है..
जो कोई भी उसकी चिंताओं के बारे में लिखता है…
पुरुषों के तर्क में कहा जाता है
एक मूर्ख औरत
और क्या मैंने तुम्हें शुरू में नहीं बताया था
कि मैं एक बेवकूफ़ औरत हूँ?
अनुवादक: दीपक वोहरा
दीपक वोहरा पेशे से अंग्रेजी के अध्यापक हैं। मूल रूप से कवि हैं। कविताओं का बेहतरीन अनुवाद करते हैं। यहां उन्होंने सीरियाई कवि निज़ार कब्बानी की कविताओं का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है। ये सभी कविताएं साहित्यिक जगत में सराही गई हैं। उम्मीद है कि आपको भी पसन्द आएंगी।