हरियाणाः जूझते जुझारू लोग – 56
सुखदेव सिंह – संघर्षशील और प्रतिबद्ध कार्यकर्ता
सुखदेव सिंह कर्मचारी संगठनों में साफगोई से बात करने वाले और निर्भीक नेता हैं। मजदूर वर्ग की पृष्ठभूमि में जन्मे, अभाव व संघर्षों के बीच पले-पढ़े। वे दलित वर्ग के हितों के संवेदनशील और प्रतिबद्ध कार्यकर्ता हैं। उनका लंबा सांगठनिक अनुभव रहा है।वे संघर्ष में टिकाऊ योद्धा के तौर पर हमेशा आगे बढ़ चढ़कर आंदोलन में हिस्सा लेते रहे।
तत्कालीन हिसार (अब भिवानी) जिले के पालवास गांव निवासी सुखदेव सिंह राज्य के मिनिस्ट्रियल स्टाफ, मजदूर वर्ग और भिवानी के आम कर्मचारियों के बीच जाना-माना चेहरा रहे हैं। उनके पिता जी का नाम चन्दगीराम और माँ का नाम बुंदादेवी है। उनका जन्म 4 फरवरी 1961 को हुआ था। वे दो भाई हैं। सुखदेव ने 1979 में दसवीं, 1984 बी.ए. और 1988 में अर्थशास्त्र में एम.ए.उपाधि प्राप्त की।
सुखदेव सिंह 05 अक्तूबर 1982 को लिपिक के पद पर नियमित रूप से भर्ती हो गए थे और 28 फरवरी 2019 को डिप्टी सुपरिटेंडेंट पद से सेवानिवृत्त हुए। उनकी नौकरी बी.एंड आर. में लगी थी जहाँ बहुत पहले 1957 से संगठन बना हुआ था। जब सन् 1983 में वे हिसार में कार्यरत थे तभी कुछ समय बाद स्टाफ के सरप्लस होने का नोटिस आ गया। नौकरी खतरे में पड़ती देख वे चिंतित हुए। वहाँ कार्यरत आनंद देव सांगवान और हरफूल सिंह भट्टी के प्रभाव से यूनियन में सक्रिय हो गए। उस आन्दोलन की वजह से सभी का समायोजन हो गया और नौकरी बच जाने से काफी हौसला मिला। इसके बाद वे यूनिट से राज्याध्यक्ष व महासचिव पद पर अनेक वर्षों तक काम करते रहे। छह साल प्रधान रहे, चार साल महासचिव रहे। दो बार संगठन सचिव बने। सर्वकर्मचारी संघ में वे 1987 में बनी पहली कमेटी ब्लॉक हिसार के कैशियर बने थे। तब वीरेन्द्र डंगवाल प्रधान और ओमप्रकाश शर्मा सचिव थे। एच.ए.यू. के सोहनलाल और मास्टर जयवीर भी कमेटी में थे। भिवानी में आने पर वे खण्ड के कैशियर, उपप्रधान, जिला सचिव आदि पदों पर रहे।
सर्वकर्मचारी संघ की केन्द्रीय कमेटी में उन्हें पहली बार 1997 में फरीदाबाद सम्मेलन में सहसचिव चुना गया था। इसके बाद 1999 में ऑडिटर, 2008 में सहसचिव, 2013 में सचिव और 2016 में ऑडिटर आदि पदों पर रहे।
वे हरियाणा मिनिस्ट्रियल स्टाफ एसोसिएशन के संगठनकर्ताओं में शामिल थे उन्हें इसका कैशियर चुना गया था। जिन्दल उसके महासचिव थे। शुरुआती दौर में वे फेडरेशन में भी 1984 में सहसचिव बनाए गए थे।
वे कुल 108 दिन जेल में रहे जिसमें सबसे लम्बा अरसा 1993 का है। वे 1987 व 1989 में भी गिरफ्तार हुए थे। निलंबन व बर्खास्तगी भी हुई थी लेकिन समस्त बाबुओं की हड़ताल के कारण दर्ज नहीं हुई।
शुरुआत में सुखदेव सिंह खेलों में रुचि रखते थे। वे 28 किलोग्राम भार वर्ग में कुश्ती में प्रथम रहे। बाद में 48 किलोग्राम वर्ग में रनरअप रहे। साक्षरता अभियान और विज्ञान मंच में वे सक्रिय रहे। वे 1987 में वामपंथी विचारधारा के संपर्क में आए। उसी के प्रभाव से अब भी जनवादी आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।
23 मार्च 1987 को उनका विवाह श्रीमती किरोड़ी देवी से हुआ। उनका देहांत हो चुका है। एक लड़का और एक बेटी हैं। बेटी विवाहित है।
शिक्षा बोर्ड और रोडवेज मुकदमे में भी नाम। हिसार जाति पूछकर तीन कर्मचारियों की पिटाई की। वे सीटू में सक्रिय हैं। आशा वर्कर्स यूनियन के उपप्रधान हैं। दलित अधिकार मंच में सक्रिय हैं आंगनबाड़ी में भी सहयोग करते हैं।
सुखदेव सिंह से मेरा परिचय सर्वकर्मचारी संघ के संघर्षों के बीच ही हुआ था। लगभग तीन दशक के अनुभव से कह सकता हूँ कि वे साफगोई से बात करने वाले और निर्भीक नेता हैं। दलितों के बीच जातिवादी रुझानों के आलोचक हैं। वर्षों लम्बे संघर्ष इस बात दावे से कहा जा सकता है कि वे टिकाऊ और भरोसेमंद हैं। सौजन्य ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच
