हरियाणाः जूझते जुझारू लोग – 55
खानचंदः संघर्षों के निर्भीक योद्धा
सत्यपाल सिवाच
अध्यापक संघ के विभिन्न पदों को संभाल चुके खानचंद की संघर्षों के निर्भीक योद्धा है। सौम्य और मिलनसारिता उनके व्यक्तित्व का एक खास हिस्सा है। खानचंद जी से मेरी पहली मुलाकात सन् 1983 में हुई थी। सन् 1982 के जीन्द सम्मेलन में सोहनलाल धक्काशाही से संविधान संशोधन करवा कर फिर प्रधान बन गए थे। इस अवधि में उन्होंने अपने गिनती विश्वस्त साथियों से मिलकर नवनिर्मित अध्यापक भवन जीन्द के सम्बन्ध में एक ट्रस्ट रजिस्टर करवा ली और उसमें अध्यापक संघ की सम्पत्ति को ट्रस्ट को हस्तांतरित कर दिया। उसके बारे में शिक्षकों को जागरूक करने के उद्देश्य से मास्टर शेरसिंह राज्य भर में संपर्क किया। वे और मैं दोनों खानचंद जी के घर गए और उनसे सहयोग करने का आग्रह किया। रात में उनके पास ही ठहरे और अगले दिन नारायणगढ़, अम्बाला, रायपुररानी, पंचकूला तक जाकर अनेक साथियों से मिले थे। खानचंद जी पर दूसरे पक्ष साथियों ने दबाव भी बनाया, लेकिन उन्होंने दो टूक बता दिया कि सत्य के पक्ष में रहेंगे। तब से आज तक मैंने उनमें यही आग्रह देखा है।
इनका जन्म गांव रोखड़ी जिला मियांवाली पंजाब इस समय के पाकिस्तान में 1 अप्रैल 1937 को हुआ। इनके पिताजी का नाम श्री लीलाराम व माता का नाम श्रीमती मेहताब कौर है। सन् 1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान से गांव बब्याल जिला अंबाला में आ गए थे। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या वाले दिन दिल्ली में थे। वहाँ से फिर रेवाड़ी चले गए। चार भाई व एक बहन हैं।
खानचंद बंटवारे के समय छठी क्लास में पढ़ रहे थे। सरकारी स्कूल रेवाड़ी से छठी से लेकर दसवीं कक्षा पास की। वहीं पर रेवाड़ी तालाब में तैरना सीखा। उसके बाद गांव भूरे वाला अंबाला जिला में जमीन अलॉट हुई और यहीं पर शिफ्ट हो गए। सन् 1953 में मैट्रिक की परीक्षा पास की । उसके बाद 1955- 56 में क्रिश्चियन स्कूल खरड़ पंजाब से जे बी टी पास की और कोटला पावर हाउस भाखड़ के प्राथमिक स्कूल में जेबीटी अध्यापक के पद पर नियुक्त हो गए। घर के हालात ठीक न होने के कारण 1959 में नौकरी छोड़ दी।
दोबारा फिर शिक्षा विभाग पंजाब के राज्य कॉडर में नियुक्त हुए। सन् 1973 से अध्यापक आंदोलन में जुड़ गए और ब्लॉक, तहसील व जिला में अलग-अलग पदों पर रहे। उस समय अध्यापक संघ के आंदोलन में बुड़ैल जेल चंडीगढ़ में रहे। इनकी शादी 1961 में सुदेश कुमारी जी के साथ हुई। इन्होंने सुदेश जी को ट्रेनिंग करवाई और 1961 में ही वह रायपुररानी (अंबाला) स्कूल में हिंदी अध्यापक के पद पर नियुक्त हुईं। इनकी दो बेटियां व एक बेटा है। सन् 1985 में हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ दो भागों में बंट गया। उस समय मास्टर शेर सिंह यमुनानगर में इनसे मिले और उनके साथ इन्होंने कुछ स्कूलों में मीटिंग करवाई। उस समय जरनैल सिंह सांगवान व अशोक कोहली, जो बिलासपुर उच्च विद्यालय में कार्यरत थे, के साथ संपर्क हुआ। इन्होंने यमुनानगर में सर्व कर्मचारी संघ के गठन में मुख्य भूमिका निभाई और बलदेव सिंह व प्रेमचंद कंबोज बिजली विभाग से जो सक्रिय नेता थे व अन्य स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर संगठन खड़ा किया। उसके बाद सभी आंदोलनों में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
खानचंद जी व उनकी पत्नी सुदेश कुमारी का घर आंदोलन करने वाले साथियों का केंद्र था। कई बार शिक्षा अधिकारियों से झड़प हुई और दूसरे अध्यापक संघ के पदाधिकारियों ने भी टकराने की कोशिश की लेकिन खानचंद जी अपनी बात पर अडिग रहे।1995 में राजकीय माध्यमिक विद्यालय तेजली से हेड टीचर के पद से रिटायर हुए।
खानचंद बहुत शांत स्वभाव के हैं। धीमी आवाज में बोलते हैं। मृदुभाषी हैं लेकिन जबान और हौसले के हिसाब अडिग रहते हैं। उनकी जीवन साथी सुदेश भी इनकी तरह ही मजबूत और शालीन हैं। सन् 2002 में उनकी पत्नी सुदेश कुमारी रिटायर हुई और 2017 में सुदेश कुमारी जी की मृत्यु हो गई है। अब भी जब हम खानचंद से मिलने उनके घर जाते हैं तो अस्वस्थ होते हुए भी वे संघर्षों की बातचीत में रुचि लेते हैं और वर्तमान हालात के प्रति चिंता व्यक्त करते हैं। शेर सिंह जी उनके खास मित्रों में हैं। सौजन्यः ओमसिंह अशफ़ाक

लेखक- सत्यपाल सिवाच
