उत्तरी भारत के ग्रामीण जीवन की एक झलक /हास्य-व्यंग्य से भरपूर ‘जयपाल’ की एक रचना)
मेरा गाँव-मेरा बचपन
जयपाल
घर क्या था
बस दो कच्चे-पक्के कोठड़े
कोठड़ों में
मंजे-मंजियां दूणें-हांडियां, घड़े-माट
डब्बे-कनस्तर, कट्टे, बोरी, टाट
मूढ़े, पीढ़े, बोईये, टोकरे, बड़ा संदूक
दो बक्से, तीन ट्रंक,
बाण रस्से, सुआ-सूतली, अनाज की बोरी
अंगीठी-चूल्हे, हारे-तंदूर, कोठी-कुठले
खाल-खलुचे, आड़-कबाड़
नए-पुराने, धुले-बिनधुले कपड़े
खुंटियों पर टंगे जहां-तहां
घास-फूंस, चिड़ी के अंडे
भीरड़, ततैए, मच्छर-मक्खी
साँप-संपोलिये, कीड़े-मकौड़े
कानखजूरे, भूंड, छिपकली
कुत्ते-कतुरुये, बिल्ली-बलूंगड़े
न्याणे-स्याणे, चाचे-ताऊ
कोई कमाऊ, कोई खाऊ
जच्चा-बच्चा, शादी-ब्याह
भूस का कोठा, सुहाग की सेज
दराणी-जठाणी,सासु-नणदें, सखी-सहेलियाँ
चुगली चबाई, झगड़े-लड़ाई
मार-पिटाई, मिलन-मिलाई
मामे-नाने, कुड़म-जंवाई
बहु-बेटियां, नाती-पोते
सगन-सगाई, भात-भराई
दसूठन हो या ब्याह रचाई
दौड़े फिरते पंडत-नाई
सतनारायण की सत्य कथा
पवित्र प्रसाद, जय जगदीश हरे
भक्तजनों के संकट पल में दूर करे
गंगा जल गीता का पाठ
पंडित जी के ठाठों-ठाठ
अहोई माता या बेहमाता
पहाड़ों वाली ऊंची माई
गुग्गा खेड़ा नौगजा पीर
साधू-स्वामी, सन्यासी-पूपने
रमते जोगी कनपट्ठे वाले
रोड्डे-मोड्डे, चौकी भरिये, पूछा देऊ
पाद मारते लम्बे-लम्बे
स्याणे-बयाणे झाड़ फूँकीये, चिमटाधारी
राहू-केतु, बड़-बड़ मंत्र
काला जादू, भूत-चुड़ैल
सिर-कटा जिन्न, पैर-कटा सैयद
परियाँ नाचें ,आधी रात
मस्जिद के पीछे, मुर्द-घाट पर
ताग्गा-तबीज, टूणा-टाम्मण
नज़र का खटका, असर औपरा
पुराणी खांसी, मियादी बुखार
मलेरया, पीलिया, पेट में गड़बड़
सिर में चक्कर, दांत की पीड़
आँख में मोतिया, टूटी ऐनक
गैस का गोला, गोड्डे गडमड
देसी वैद, गप्पी डाक्टर
सबका इलाज, एक ही पुड़िया
सरकारी डाक्टर
स्कूल मास्टर
पुलिस पटवारी जिले के अफसर
सारे साहब सबको सलाम
सेवा कर दरिया में डाल
घर के पिछवाड़े डंगर बाड़ा
बाड़े में बड़
बड़ की जड़ में बैल-गाय-भैंस
कटडू-बछड़ू गोबर-मूत
पीठ पर छप गई भैंस की पूंछ
ताऊ की खटिया,हुक्का गुड़गुड़
ताई का चरखा, टूटी चरमख
बड़ के ऊपर पंछियों की बस्ती
काग, उल्लू, तोता, चिड़िया
चील, गर्शल्ली, कान कोतरी
काटो-किरला भागमभाग
चील का घोंसला सबसे ऊपर
तड़ाक से गिरती सिर पर बीठ
गाँव से बाहर खेतो खेत
गेहूँ-जीरी, ज्वार-बाजरा
कददू, तोरी, भिंडी, करेला
बैंगन, मूली, गाजर, धनिया
मेथी, सरसों, कच्चे प्याज
कच्ची अम्बियाँ, कच्चे बेर
गाँव के बच्चे
नाचें कूदें तोड़ें मरोड़ें
लटक-मटक कर खाएं बगाएं
पकडे न जाएँ
भरी दोपहर छोरा-छोरी
कर लेते कुछ चोरा चोरी
जैल्ले की बकरी
फत्तू की बछिया
सन्तु की भैंस
खेत में घुसकर मौज उड़ाएँ
चिड़ी-जनौर, ढंगर-ढोर
घांस-फूंसड़ा, उब्बड़-खाब्बड़
सारा गाँव एक ही टाब्बर
एक सी चाल एक सी ढाल
बीच में सबके एक सी तार
इसी तार पर खतरा भारी
रल मिल सोचो जनता सारी
