ट्रेड यूनियनों, एआईपीईएफ सदस्यों ने श्रम संहिता के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया
राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन में साझा मंच ने कहा-
ये संहिताएं हमारे हड़ताल करने के अधिकार को खत्म करती हैं
यूनियन पंजीकरण के काम को मुश्किल बनाती हैं
यूनियनों की मान्यता खत्म करना आसान बनाती हैं
सुलह और फैसले की प्रक्रिया को मुश्किल बनाती हैं
श्रम अदालतों को बंद करती हैं और कामगारों के लिए न्यायाधिकरण लाती हैं
रजिस्ट्रार को यूनियनों का पंजीकरण खत्म करने की पूरी शक्ति देती हैं
नयी दिल्ली। सरकार द्वारा मंज़ूर चार श्रम संहिताओं के खिलाफ बुधवार को देश भर में विरोध प्रदर्शन किया गया। इसमें 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों, किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा और बिजली क्षेत्र के इंजीनियरों के संगठन एआईपीईएफ के सदस्यों के एक साझा मंच ने भाग लिया।
श्रम कानूनों में एक अहम बदलाव करते हुए, सरकार ने शुक्रवार को सभी चार श्रम संहिता को अधिसूचित कर दिया, जिससे कई बड़े सुधार हुए हैं, जिसमें गिग वर्कर्स के लिए सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा कवरेज, सभी कर्मचारियों के लिए ज़रूरी नियुक्ति पत्र, और सभी क्षेत्रों में कानूनी न्यूनतम मज़दूरी और समय पर भुगतान शामिल हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को दिए एक ज्ञापन में, साझा मंच ने कहा, ‘‘ये संहिताएं हमारे हड़ताल करने के अधिकार को खत्म करती हैं, यूनियन पंजीकरण के काम को मुश्किल बनाती हैं, यूनियनों की मान्यता खत्म करना आसान बनाती हैं, सुलह और फैसले की प्रक्रिया को मुश्किल बनाती हैं, श्रम अदालतों को बंद करती हैं और कामगारों के लिए न्यायाधिकरण लाती हैं, रजिस्ट्रार को यूनियनों का पंजीकरण खत्म करने की पूरी शक्ति देती हैं।’’
मीडिया से बात करते हुए, एआईटीयूसी की महासचिव अमरजीत कौर ने कहा कि देश के 500 से ज़्यादा ज़िलों में विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें सभी क्षेत्र और उद्योगों के संगठित और असंगठित श्रमिकों ने हिस्सा लिया।
इस बीच, एआईपीईएफ के अध्यक्ष, शैलेंद्र दुबे ने कहा कि लाखों बिजली क्षेत्र के कामगारों ने भी श्रम संहिता और बिजली संशोधन विधेयक के विरोध में हिस्सा लिया। ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (एआईपीईएफ) ने इसका विरोध किया है, और कहा है कि विधेयक में कई वितरण लाइसेंस धारकों को सरकारी डिस्कॉम के मौजूदा नेटवर्क का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव है।
दुबे ने कहा, ‘‘यह विधेयक निजीकरण के मकसद का समर्थन करता हुआ लगता है। केंद्र सरकार बिजली (संशोधन) कानूनों के जरिये अपने निजीकरण के एजेंडा को आगे बढ़ा रही है।’’
